जानें महिलाओं को क्यों खुले बाल लेकर मंदिर में नहीं करना चाहिए प्रवेश

  
khule kesh

Aapni News, Dharam
हमारे धर्म शास्त्रों के अंदर बहुत सी ऐसी बातों का जिक्र होता है जिसका हमारे जीवन के साथ कोई न कोई संबंध जरूर होता है। धर्म ग्रंथों में महिलाओं को लेकर भी कई तरह की बातें बताई गई है। जैसे कि महिलाओं को बाल किस दिन धोने चाहिए, मासिक धर्म के दौरान किस चीज को हाथ नहीं लगाना चाहिए, सिंदूर किस दिन लगाना चाहिए, चूड़ियां पहनने के लिए कौन से नियमों का पालन करना चाहिए? इसके अलावा इसी तरह से जुड़ा हुआ है मंदिर में प्रवेश को लेकर भी।

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धर्म ग्रंथों में लिखा गया है कि महिलाओं को खुले बाल लेकर मंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए। इन सब बातों का जिक्र जहां धर्म ग्रंथों में अंकित है वहीं हमारे बूढ़े बुजुर्ग भी इन बातों को दोहराते रहते हैं। ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि धर्म ग्रंथों और बूढ़े बुजुर्गों की जो धारणा है कि महिलाओं को खुले बाल लेकर मंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए, तो इसके पीछे की वजह क्या है?

दरअसल इंसान मंदिर में प्रवेश अपने मन की शांति, बुरे विचारों और नकारात्मक भावनाओं को निकालने के लिए करते हैं। इंसान मंदिर में प्रार्थना करता है जिसका उद्देश्य होता है कि वह भगवान के करीब पहुंच जाए और उसको आत्मिक शांति मिले। ऐसे में भगवान के घर अगर हम जा रहे हैं तो हमें साफ सफाई और शुद्धता का तो विशेष तौर पर ध्यान रखना ही होता है। हमारे कपड़े साफ होने चाहिए वहीं शरीर भी शुद्ध होना आवश्यक है।

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इसके अलावा बाल खोलकर मंदिर में प्रवेश ना करने का एक कारण यह है कि महिलाओं के बाल पुरुषों के बालों की तुलना में काफी लंबे होते हैं। ऐसे में यदि बाल खुले होंगे तो भगवान की भक्ति में महिलाओं का मन कम लगेगा जबकि बालों को बारी बारी ठीक करने में ध्यान बंटेगा। इसके लिए यह मान्यता है कि बालों को खुला छोड़ने की बजाय यदि बंधे हुए होंगे तो भक्ति और पूजा में ठीक से मन लगेगा। इसके अलावा महिलाओं के खुले बाल के संबंध में एक यह भी धारणा है कि इससे नकारात्मकता फैलती है।

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पुराणों की मानें तो महाभारत और रामायण में ऐसे कई प्रसंग आए हैं जिनका नकारात्मक असर देखने को मिला है। इसमें एक रामायण की कथा में कैकई का वृतांत है। जिसमें महाराज दशरथ ने जब अपने जेष्ठ पुत्र प्रभु श्री राम को राजपाट सौंपने का फैसला किया तब केकई नाराज होकर कोप भवन में बाल खोल कर बैठ गई थी। बाल खोल कर बैठने का मतलब था कि वह नकारात्मकता दिखाए। वहीं महाभारत काल के अंदर भी जब द्रोपदी को दुशासन राज दरबार में बालों से घसीटता हुआ लाया और उसे शर्मिंदा किया। तब राजभवन में आकर द्रौपदी ने अपने बाल तब तक खुले रखने की शपथ खाई जब तक कि उसके अपमान का प्रतिशोध पूरा ना हो जाए। ऐसे में खुले बाल रखना प्रतिशोध, आक्रोश और क्रोध का प्रतीक माना जाता है।

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शास्त्रों के मुताबिक पूजा पाठ एवं शुभ कार्य में यदि महिलाएं बाल खोलकर पूजा-अर्चना करती है तो यह स्वीकार नहीं मानी जाती है। मान्यता है कि इससे देवता नाराज हो जाते हैं जिसके कारण घर में दुर्भाग्य आ सकता है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक भी खुले बाल नकारात्मक ऊर्जा अपनी और खींचते हैं वहीं इसे ईश्वर का अपमान माना जाता है। यही वजह है कि महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करते समय अपने बाल बांध कर रखने चाहिए, वहीं बालों को ढक कर रखने की सलाह भी दी जाती है।

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