परमहंस अनमोल वचन 10: दुख कहीं से भी आता हुआ मालूम होता हो, दुख स्वयं के ही भीतर से आता है

Aapni News दुख कहीं से भी आता हुआ मालूम होता हो, दुख स्वयं के ही भीतर से आता है। चाहे कोई किसी परिस्थिति पर थोपना चाहे, चाहे किन्हीं व्यक्तियों पर, संबंधों पर, संसार पर, लेकिन दुख के सभी कारण झूठे हैं। जब तक कि असली कारण का पता न चल...
  
परमहंस अनमोल वचन 10: दुख कहीं से भी आता हुआ मालूम होता हो, दुख स्वयं के ही भीतर से आता है

Aapni News

दुख कहीं से भी आता हुआ मालूम होता हो, दुख स्वयं के ही भीतर से आता है। चाहे कोई किसी परिस्थिति पर थोपना चाहे, चाहे किन्हीं व्यक्तियों पर, संबंधों पर, संसार पर, लेकिन दुख के सभी कारण झूठे हैं। जब तक कि असली कारण का पता न चल जाए। ओर वह असली कारण व्यक्ति स्वयं ही है। पर जब तक यह दिखाई न पड़े कि मेरे दुख का कारण मैं हूं तब तक दुख से छुटकारे का कोई उपाय नहीं है। क्योंकि ठीक कारण का ही पता न हो, ठीक लदान दी न हो सके, तो इलाज के होने का कोई उपाय नहीं है। और जब तक मैं भ्रांत कारण खोजता रहूं, तब तक कारण तो मुझे मिल सकते हैं, लेकिन समाधान, दुख से मुक्ति, दुख से छुटकारा नहीं हो सकता।
और आश्चर्य की बात है कि सभी लोग सुख की खोज करते हैं। और शायद ही कोई कभी सुख को उपलब्ध हो पाता है। इतने लोग खोज करते हैं, इतने लोग श्रम करते हैं, जीवन दाव पर लगाते हैं और परिणाम में दुख के अतिरिक्त हाथ में कुछ भी नहीं आता। जीवन के बीत जाने पर सिर्फ आशाओं की राख ही हाथ में मिलती है। सपने, टूटे हुए; इंद्रधनुष, कुचले हुए; असफलता, विफलता, विषाद! मौत के पहले ही आदमी दुखों से मर जाता है। मौत को मारने की जरूरत नहीं पड़ती; आप बहुत पहले ही मर चुके होते हैं; जिंदगी ही काफी मार देती है। जीवन आनंद का उत्सव तो नहीं बन पाता, दुख का एक तांडव नृत्य जरूर बन जाता है। और तब स्वाभाविक है कि यह संदेह मन में उठने लगे कि इस दुख से भरे जीवन को क्या परमात्मा ने बनाया होगा? और अगर परमात्मा इस दुख से भरे जीवन को बनाता है, तो परमात्मा कम और शैतान ज्यादा मालूम होता है। और अगर इतना दुख जीवन का फल है, तो परमात्मा सैडिस्ट, दुखवादी मालूम होता है। लोगों को सताने में जैसे उसे कुछ रस आता हो! तो फिर स्वाभाविक ही है कि अधिक लोग दुख के कारण परमात्मा को अस्वीकार कर दें।
जितना ही मैं इस संबंध में लोगों के मनों की छानबीन करता हूं, तो मुझे लगता कि नास्तिक कोई भी तर्क के कारण नहीं होता। नास्तिक लोग दुख के कारण हो जाते हैं। तर्क तो पीछे आदमी इकट्ठे कर लेता है।

परमहंस अनमोल वचन 07: जीव तो ट्रांसफर है, मृत्यु तो शरीर की होती है

मनुष्य के जीवन में इतना दुख है, इतनी पीड़ा, इतना तनाव कि ऐसा मालूम पड़ता है कि शायद पशु भी हमसे ज्यादा आनंद में होंगे, ज्यादा शांति में होंगे। समुद्र और पृथ्वी भी शायद हमसे ज्यादा प्रफुल्लित हैं। रद्दी से रद्दी जमीन में भी फूल खिलते हैं। गंदे से गंदे सागर में भी लहरें आती हैं–खुशी की, आनंद की। लेकिन मनुष्य के जीवन में न फूल खिलते हैं, न आनंद की कोई लहरें आती हैं।
मनुष्य के जीवन को क्या हो गया है? यह मनुष्य की इतनी अशांति और दुख की दशा क्यों है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि मनुष्य जो होने को पैदा हुआ है वही नहीं हो पाता है, जो पाने को पैदा हुआ है वही नहीं उपलब्ध कर पाता है, इसीलिए मनुष्य इतना दुखी है?

अगर कोई बीज वृक्ष न बन पाए तो दुखी होगा। अगर कोई सरिता सागर से न मिल पाए तो दुखी होगी। कहीं ऐसा तो नहीं है कि मनुष्य जो वृक्ष बनने को है वह नहीं बन पाता है और जिस सागर से मिलने के लिए मनुष्य की आत्मा बेचैन है, उस सागर से भी नहीं मिल पाती है, इसीलिए मनुष्य दुख में हो?
धर्म मनुष्य को उस वृक्ष बनाने की कला का नाम है।

परमहंस अनमोल वचन 08: यदि परमात्मा है, तो वह सारी अराजकता को मिटा क्यों नहीं देता?

Text Example

Disclaimer : इस खबर में जो भी जानकारी दी गई है उसकी पुष्टि Aapninews.in द्वारा नहीं की गई है। यह सारी जानकारी हमें सोशल और इंटरनेट मीडिया के जरिए मिली है। खबर पढ़कर कोई भी कदम उठाने से पहले अपनी तरफ से लाभ-हानि का अच्छी तरह से आंकलन कर लें और किसी भी तरह के कानून का उल्लंघन न करें। Aapninews.in पोस्ट में दिखाए गए विज्ञापनों के बारे में कोई जिम्मेदारी नहीं लेता है।