भगवान विष्णु के कूर्मावतार लेने और मां लक्ष्मी के बीच क्या था संबंध

  
विष्णु

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देवताओं और दानवों की समुद्र मंथन में सहायता करने के लिए भगवान विष्णु ने ‘कूर्म’ अवतार लिया। इन्हें ‘कच्छप’ अवतार भी कहा जाता है। नरसिंह पुराण के अनुसार कूर्मावतार भगवान विष्णु के दूसरे अवतार हैं, जबकि भागवत पुराण के अनुसार ये विष्णुजी के ग्यारहवें अवतार हैं। समुद्र मंथन में कालकूट विष, अमृत और लक्ष्मी सहित चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई थी।

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कच्छप अवतार के पीछे एक कहानी है। एक समय था जब देवताओं को अपनी शक्ति पर गर्व होता था। एक बार दुर्वासा ऋषि ने इंद्र को पारिजात पुष्प की माला भेंट की। इन्द्र ने अहंकारवश यह माला 'ऐरावत' के मस्तक पर डाल दी। यह देखकर ऋषि दुर्वासा ने इंद्र को क्रोध आ गया और उन्हें सिरहीन जाने का श्राप दे दिया। श्राप के प्रभाव से लक्ष्मी समुद्र में समा गई। इससे सुर-असुर लोक का सारा वैभव नष्ट हो गया। इस घटना से दुखी होकर इंद्र भगवान विष्णु की शरण में गए। उन्होंने इंद्र से पूछा कि समुद्र को किसने हिलाया और इस क्षेत्र में असुरों के लिए मदद मांगी।

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इंद्र असुरों के राजा बलि के पास पहुंचे और समुद्र मंथन के कार्य में सहयोग मांगा। असुर राज बलि इसके लिए तैयार हो गए। भगवान विष्णु के आदेश पर देवताओं ने समुद्र मंथन के लिए मंदराचल को मथानी और वासुकि को रस्सी बनाया और मंथन आरंभ कर दिया। लेकिन गहरे सागर में मंदराचल डूबने लगा। इस समस्या को दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने ‘कच्छप’ का अवतार धारण किया और मंदराचल को आधार दिया। तब जाकर समुद मंथन का कार्य आरंभ और पूर्ण हुआ। भगवान विष्णु के कूर्मावतार लेने का कारण मां लक्ष्मी को दोबारा प्राप्त करना था। इसके साथ ही महाप्रलय के दौरान जो बहुमूल्य रत्न और औषधियां समुद्र में चली गई थीं, उन्हें पुन प्राप्त कर संसार का कल्याण करना था।

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