मुख्तार के 3 शार्प शूटर कौन: बदला लेने के लिए गैंगस्टर बने अनुज, अंगद और अमित, मुख्तार देता है सैलरी

  
मुख्तार के 3 शार्प शूटर कौन: बदला लेने के लिए गैंगस्टर बने अनुज, अंगद और अमित, मुख्तार देता है सैलरी

Aapni News, Crime

माफिया मुख्तार अंसारी को गाजीपुर की MP/MLA कोर्ट ने 17 मई को हत्या की कोशिश के एक केस से बरी कर दिया। ये बीते कई महीनों में अंसारी परिवार के लिए आई इकलौती राहत की खबर है। 2009 में ही गाजीपुर में कपिल देव सिंह की हत्या हुई थी। मुख्तार पर साजिश रचने का आरोप है। 20 मई को इस केस में फैसला आना है।

इससे पहले 29 अप्रैल को गैंगस्टर एक्ट में उसे 10 साल की सजा हो चुकी है। आरोप था कि कपिल देव सिंह की हत्या मुख्तार ने जेल में रहते हुए कराई थी। उसके इशारे पर शूटर लोगों को मारते रहे।

इन शूटर्स के दम पर ही मुख्तार ने 15 हजार करोड़ की प्रॉपर्टी खड़ी कर ली। ये मुख्तार के तीन शूटर्स की कहानी है, इन पर 70 से ज्यादा केस दर्ज हैं, जिनमें से 12 मर्डर केस हैं। इस सीरीज की पहली स्टोरी में हमने मुख्तार के इसी साम्राज्य के बारे में बताया था। अब उसके शार्प शूटर्स के बारे में पढ़िए…

मुख्तार ने सैलरी पर शूटर रखने शुरू किए
UP पुलिस के अधिकारी बताते हैं कि पूर्वांचल में दबदबा बनाने के लिए मुख्तार ने सैलरी पर शूटर्स रखने की शुरुआत की। वो उन्हें काम के हिसाब से हर महीने पैसे देता था। किसी वारदात के बाद गुर्गे फरारी काटते थे, तो उनके रहने-खाने और दूसरी सुविधाओं के लिए भी मुख्तार बड़ी रकम खर्च करता था।

मुख्तार के शूटर कौन हैं, किस बैकग्राउंड से आते हैं, कैसे मुख्तार से जुड़े, अब कहां हैं और उनके परिवारों का क्या हुआ। ये जानने के लिए हम मुख्तार के उन तीन शूटर्स के घर गए, जिनकी पूर्वांचल में सबसे ज्यादा दहशत है।

इनमें मऊ का अनुज कनौजिया एक लाख का इनामी है और 5 साल से फरार है। गाजीपुर का अंगद राय बिहार की जेल में बंद है। गाजीपुर का ही अमित राय अभी जमानत पर है। क्राइम करते-करते ये तीनों तो मुख्तार के करीबी बन गए, पर उनके परिवारों के पास अब रहने-खाने लायक भी इंतजाम नहीं है।

मुख्तार के पास ऐसे गुर्गे ज्यादा हैं, जिन पर गांव की लड़ाई में हत्या या हत्या की कोशिश के आरोप लगे। वे भागकर मुख्तार के पास पहुंच गए। मुख्तार ने उन्हें पुलिस से बचाया और बदले में ये लोग उसके काम करने लगे।

सबसे पहले अनुज कनौजिया के गांव से रिपोर्ट…
मऊ से 40 किमी दूर गाजीपुर और आजमगढ़ के बॉर्डर पर चिरैयाकोट कस्बा है। इससे 10 किमी दूर, सड़क से 2 किमी अंदर बहलोलपुर गांव है। अनुज कनौजिया इसी गांव का है। गांव में घुसते ही दो टूटे मकान दिखते हैं। एक अनुज के मां-बाप का है और दूसरा भाई का।

मुख्तार के 3 शार्प शूटर कौन: बदला लेने के लिए गैंगस्टर बने अनुज, अंगद और अमित, मुख्तार देता है सैलरी

भाई की गृहस्थी दो बल्लियों पर टिके शेड के नीचे ही चल रही है। हम पहुंचे तब अनुज की भाभी शशिप्रभा इसी शेड के नीचे गैस पर चाय बना रही थीं। वे कहती हैं, ‘अनुज 17 साल का था, जब घर छोड़कर भागा था। उसके बाद हम लोग मुंबई चले गए। वहां जो कमाया, गांव वापस आकर कुछ सास-ससुर से लिया, पूरा जमा पैसा लगाकर पक्का घर बनवाया था। एक दिन अफसरों की टीम आई और घर पर बुलडोजर चला दिया।’

‘अधिकारी कह रहे थे कि ये मकान अनुज ने बनवाया है। हमने भी सोच लिया है, जब तक मकान नहीं मिलता, यहां से नहीं जाएंगे। खुले में इस गर्मी में रह रहे हैं। दो बेटे हैं। दोनों स्कूल जाते हैं। आसपास घास-फूस के ढेर लगे हैं, किसी को सांप-बिच्छू ने काट लिया, तो क्या करेंगे।’

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भाई की हत्या हुई, फिर खुद की जान पर आई तो अपराधी बन गया
अनुज अपराधी कैसे बना? इसका जवाब उसके बड़े भाई विनोद से मिला। विनोद मजदूरी करते हैं। वे उस वक्त मजदूरी करने ही गए थे। लौटे तो हमसे बात की। 17 साल पुराने किस्से से शुरुआत की। कहने लगे, ‘हमारे पिता हनुमान कनौजिया सरकारी स्कूल में टीचर थे। हम तीन भाई थे। मैं, मनोज और अनुज। 2006-07 की बात है। हमारा पट्टीदारों से झगड़ा हुआ था। बीच में बाबूसाहब (ठाकुर) लोग आ गए। झगड़ा होने पर वे मनोज के पीछे पड़ गए।’

‘एक दिन मनोज को बहुत पीटा और अधमरी हालत में खेत में फेंक गए। मनोज ने बदला लेने के लिए बाबूसाहब के परिवार के एक आदमी का मर्डर कर दिया और भाग गया। कुछ साल फरार रहा। उसके साथ एक लड़का और था, उसने मुखबिरी कर दी।'

'पुलिस ने मनोज को पकड़ लिया और बाबूसाहब लोगों को सौंप दिया। उन लोगों ने उसे इतना मारा कि उसकी जान निकल गई। पुलिस ने मनोज का एनकाउंटर दिखा दिया। इसके बाद बाबूसाहब लोग अनुज के पीछे पड़ गए। अनुज ने बाबूसाहब के परिवार के शरद सिंह की हत्या कर दी और फरार हो गया। तब वो 17 साल का था।’

‘गांव से भागकर अनुज मुख्तार अंसारी के पास पहुंच गया। मुख्तार उससे अपने काम कराता और बदले में उसे पुलिस और जेल जाने से बचाता। हालांकि 6-7 महीने में ही अनुज मुख्तार से अलग हो गया था। इधर झगड़ा बढ़ने के बाद हम अपने परिवार के साथ मुंबई चले गए।'

'मामला शांत हो गया, तभी लौटे। अब प्रशासन हमारे ऊपर कार्रवाई कर रहा है। हमारा घर तोड़ दिया। कहते हैं कि तालाब की जमीन पर कब्जा किया है। अनुज की कमाई से घर बना है।’

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माता-पिता भाई से अलग रह रहे, टीन शेड में ठिकाना
हमने विनोद से पूछा कि आपके माता-पिता कहां हैं, उन्होंने गांव की ओर इशारा कर बताया कि गांव में ही कहीं बैठे होंगे। हम गांव में बढ़े तो एक और टूटा मकान दिखा। उसके बगल में पक्का मकान बना है। घर के सामने कुर्सी पर बनियान-धोती पहने 80 बरस के बुजुर्ग डंडा पकड़े बैठे थे। पता चला कि यही अनुज के पिता हनुमान कनौजिया हैं। हमने पूछा कि यही आपका घर है, तो बोले, ‘नहीं, ये तो पड़ोसी का है।’

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फिर एक टीन शेड की तरफ ले गए। चार पाइप पर लगे टीन शेड के नीचे एक चारपाई और घर का सामान रखा है। अनुज के पिता बोले, ‘यही हमारा घर है। पानी बरसता है, तो मैं और मेरी पत्नी फूस सिर पर रखकर रात भर बैठे रहते हैं। सामान भी भीगने से बचाना रहता है। अफसरों ने हमारा घर गिरा दिया, तो गांव के एक आदमी ने कुछ दिन अपने घर में जगह दे दी थी। उन्हें भी परेशान किया जाना लगा तो हमने उनका घर छोड़ दिया और यहीं रहने लगे।’

हमने पूछा, आप बड़े बेटे के साथ नहीं रहते, छोटा फरार है तो खाना-पीना कैसे चलता है। हनुमान कहते हैं, ’अनुज ने शरद की हत्या की, तो उस केस में मुझे भी आरोपी बनाया गया। मुझे उम्रकैद की सजा मिली थी। तब मैं रिटायर ही हुआ था, फिर 12 साल तक जेल में रहा। उम्र ज्यादा होने की वजह से सरकार ने सजा पूरी होने से पहले ही छोड़ दिया। पेंशन बंद है। रिटायरमेंट वाला फंड भी रुक गया। गांव वाले जो दे देते हैं, उसी से पेट भरते हैं।’

हमने पूछा कि ‘आप टीचर थे, क्या सोचा था कि आपके बच्चे ऐसा काम करेंगे कि बुढ़ापे में आपको ऐसी जिंदगी जीनी पड़ेगी।’ सांस भरते हुए हनुमान कहते हैं, ‘बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है, जो किस्मत में लिखा है, वो होना ही है।’

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जेल में रहते हुए शादी की, पत्नी रंगदारी के मामले में गिरफ्तार
अनुज कनौजिया की शादी की कहानी भी फिल्मों जैसी है। उसके भाई विनोद बताते हैं, ‘दुल्लालपुरवा की एक लड़की रीना राय किसी तरह अनुज से मिली थी। कोई लड़का उसे परेशान कर रहा था। उससे छुटकारा पाने के लिए रीना ने अनुज से मदद मांगी। अनुज ने लड़के को फोन कर समझाया, लेकिन वो नहीं माना। अनुज ने उसे सुधरने के लिए 15 दिन का वक्त भी दिया। लड़का फिर भी नहीं माना, तो उसकी दुकान पर जाकर गोली मार दी। इसके बाद रीना अनुज को पसंद करने लगी।’

दूसरे समाज की होने के बाद भी परिवारवालों की मर्जी के बिना उसने अनुज से शादी कर ली। ये 6-7 साल पहले की बात है, तब अनुज जेल में था। दोनों की शादी पुलिस की कस्टडी में ही हुई। अनुज के जेल जाने के बाद रीना ही उसका काम देख रही थी। मार्च 2023 में रंगदारी मांगने के मामले में पुलिस ने रीना को झारखंड के रांची से गिरफ्तार किया था। इस वक्त वो मऊ जेल में है। उसके साथ उसके दो बच्चे भी हैं।

परिवार ने कहा- अनुज ने मुख्तार की गैंग छोड़ी, पुलिस का इनकार
अनुज का परिवार भले ही मुख्तार से उसके कनेक्शन से इनकार करता है, लेकिन पुलिस के मुताबिक अनुज अब भी मुख्तार से जुड़ा है। अभी वो आजमगढ़ के तरवां थाना क्षेत्र के एरा कलां में गोलीबारी के मामले में मुख्तार के साथ नामजद आरोपी है। यहां सड़क बनने के दौरान हुए विवाद में एक मजदूर की मौत हो गई थी। इस मामले में मुख्तार अंसारी पर साजिश रचने का आरोप लगा था। कुल 11 लोग नामजद हैं, जिनमें से अनुज फरार है। उस पर 22 केस दर्ज हैं। चिरैयाकोट थाने के टॉप टेन क्रिमिनल्स में उसका नाम है।

अंगद राय के गांव शेरपुरा खुर्द से रिपोर्ट…
अनुज के गांव से लगभग 100 किमी दूर गाजीपुर की मोहम्मदाबाद तहसील में शेरपुरा खुर्द गांव है। यहां मुख्तार अंसारी के खास शूटर अंगद राय का घर है। गांव के पास जाने पर लगता है कि जैसे गांव किसी तालाब पर बसा हो। बसावट सड़क से काफी नीचे है। सड़क किनारे रुककर हमने एक शख्स से अंगद के घर का पता पूछा, तो वो हमें घूरने लगा। फिर हाथ से इशारा कर दिया। सड़क से करीब 100 मीटर दूर चलने के बाद हम एक बड़े से मकान के सामने पहुंचे।

यहां हमें अंगद के बड़े भाई विश्वनाथ राय मिले। वे बताते हैं, ‘अंगद अभी जेल में है। घर में पत्नी और दो बेटे हैं। हमने कहा, उनसे मिलवा दीजिए। तो बोले, ‘जो पूछना है हमसे पूछो। परिवार से नहीं मिलाएंगे।’

फिर उनसे बातचीत शुरू हुई। विश्वनाथ ने बताया, ‘हम चार भाई थे। रामनारायण राय सबसे बड़े थे। लोग उन्हें डब्लू पहलवान कहते थे। वो पहलवान थे, इसलिए किसी से नहीं डरते थे। गांव के कुछ लोग उनसे जलते थे। गांव की राजनीति में बड़े भाई के अलावा हम पर भी केस दर्ज हो गया।'

भाई की हत्या का बदला लिया, और मुख्तार से जा मिला
विश्वनाथ बताते हैं कि ‘30 जून 2004 को बड़े भाई तारीख पर गाजीपुर कोर्ट जा रहे थे। गांव से कुछ दूर गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई। भाइयों में अंगद सबसे छोटा था। वह भाई के मर्डर का बदला लेना चाहता था। हम लोगों ने बहुत समझाया, लेकिन वो नहीं माना। 2 महीने 23 दिन बाद 23 सितंबर 2004 को भाई की हत्या का बदला ले लिया। भाई के हत्यारे को मारकर फरार हो गया।’

विश्वानाथ कहते हैं कि ‘शुरुआत में अंगद मुख्तार अंसारी के साथ था, लेकिन अब अलग है। वो शराब तस्करी में बिहार की जेल में है। हम सभी भाई अलग-अलग रहते हैं। इसके बावजूद प्रशासन के लोग अंगद के साथ हमारे घर की भी पैमाइश कर गए हैं। कहते हैं कि हमारा घर तोड़ेंगे। 6 से 7 बीघा जमीन है। खेती-बाड़ी के भरोसे ही घर का खर्च चल रहा है।’

अंगद के भाई की बात को हमने क्रॉस चेक किया, तो पता चला कि 9 मई को ही पुलिस ने अंगद की पत्नी के नाम से जमीन और गांव का पैतृक घर जब्त किया है। इसकी कीमत 7.17 करोड़ रुपए है।

गांव के लोग बोले- अंगद ‘फाटक’ से जुड़ा है, हम नहीं बोलेंगे
विश्वनाथ से मिलकर हम गांव में पहुंचे। यहां लोग अंगद और उसके परिवार के बारे में बात नहीं करना चाहते। सभी ने कहा, ‘अंगद फाटक से जुड़ा है। हम कुछ नहीं बोलेंगे।’ फाटक गाजीपुर में मुख्तार के घर को कहा जाता है।

इसके बाद हम राजेंद्र राय के परिवार से मिले। मुख्तार के इशारे पर अंगद राय ने 2005 में राजेंद्र राय की हत्या कर दी थी।

मुख्तार ने धमकी दी थी, मेरे साथ आओ या राजनीति छोड़ दो
गाजीपुर के तमलपुरा गांव के रहने वाले राजेंद्र राय भांवरकला के ब्लॉक प्रमुख रहे थे। वे BJP विधायक कृष्णानंद राय से जुड़े थे। कई बार मुख्तार ने उन्हें धमकी दी थी कि राजनीति करनी है, तो मेरे साथ आ जाओ या फिर कृष्णानंद राय का साथ छोड़ दो। राजेंद्र नहीं माने, 27 जून 2005 को उन्हें मठिया गांव में गोली मार दी गई।

राजेंद्र राय के घर उनके भतीजे अंकित राय और चचेरे भाई साधू सिंह मिले। अंकित बताते हैं, ‘2004 में UP में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी, लेकिन मोहम्मदाबाद सीट से BJP के कृष्णानंद राय विधायक बने। 2005 में ब्लॉक प्रमुख का चुनाव था। ताऊजी का गांव में काफी प्रभाव था। इस बात को अंसारी परिवार जानता था।'

अंसारी चाहते थे कि ब्लॉक प्रमुख उनके करीब हों। उन्हें डर था कि उनका उम्मीदवार हार जाएगा। मुख्तार और अफजाल अंसारी ने उन्हें धमकी भी दी थी कि सीट का कोई दावेदार न रहे. ताऊजी ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया।

राजेंद्र राय के चचेरे भाई साधु सिंह का कहना है कि 'अंगद राय और उनके साथियों ने राजेंद्र राय पर हमला किया. उनके पैर में गोली लगी है। वे भागे और एक घर में घुस गए। हत्यारों ने घर में घुसकर उनके सिर में गोली मार दी। इस मामले में 2014 में फैसला आया और अंगद राय को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। फिर मामला हाईकोर्ट गया और अंगद को जमानत मिल गई।

अंकित का दावा है कि 2004 से 2005 तक मुख्तार ने विधायक कृष्णानंद राय से जुड़े कई लोगों को मरवाया. तब पुलिस भी मुख्तार के खिलाफ कार्रवाई करने से डर रही थी। मुख्तार के खिलाफ कोई बोलने को तैयार नहीं था।

तीसरे शूटर अमित राय का गांव जोगा मुसाहिब...
अंगद के गांव से करीब 60 किमी दूर जोगा मुसाहिब गांव है। यहां मुख्तार के शार्प शूटर अमित राय का घर है। रामप्रवेश राय ग्राम प्रधान मुख्तार के शूटर अमित राय के पिता हैं। जब हम अमित राय का नाम लेकर गांव के अंदर पहुंचे तो देखा कि उनके घर के आसपास कैमरे लगे हुए हैं.

हम घर की फोटो लेना चाहते थे, लेकिन उनके लोगों ने हमें रोक दिया। थोड़ी देर बाद अमित राय के पिता राम प्रवेश राय बाहर आए। आने का कारण पूछा। हमने कहा कि हमें अमित राय के बारे में बात करनी है। उसने इनकार कर दिया। कहने लगे, 'उसकी बात मत करो। यहाँ से चले जाओ।' वहां खड़े लोग भी भड़कने लगे। जब हम वहां से निकले तो हमारे पीछे गांव से कुछ लोग भी निकले।

उनके लौटने के बाद हम गांव वापस चले गए। यहाँ हमें जेपी राय मिलते हैं। अमित के बारे में पूछने पर वह कहते हैं, 'अमित राय के पिता अपनी ताकत के दम पर गांव के मुखिया बने हुए हैं। 2006 में अमित ने गांव के ही एक व्यक्ति पर हमला किया था। इससे वह दहशत में आ गया।

अमित के खिलाफ हत्या, अपहरण और रंगदारी के मामले दर्ज हैं। 2021 में जानलेवा हमले का आरोप था, जिसके बाद से वह फरार चल रहा था। उस पर 50 हजार का इनाम था। पुलिस ने अमित को अगस्त 2021 में अयोध्या से गिरफ्तार किया था। अब वह जमानत पर बाहर है।

हम गांव में ही राजकुमार राय से भी मिले। वे बताते हैं कि '2021 में प्रधानमंत्री का चुनाव था। मेरे भाई ने अमित के पिता की जगह दूसरे प्रत्याशी का समर्थन किया था। इससे अमित राय नाराज हो गए। उसने मेरे भाई पर हमला किया। वह बच गया, फिर घर में घुसकर मारपीट की। यह मामला चल रहा है। इसके बावजूद वह धमकी देता रहता है।

2005 के मऊ दंगों में मुख्तार बने आरोपी, गवाह हुए बरी... इस सीरीज की अगली रिपोर्ट उसी जगह से जहां से दंगे शुरू हुए थे.

2005 का मऊ दंगा, जिसमें 14 लोगों की मौत हुई थी। दंगा इतना भयानक था कि एक महीने के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया था. ट्रेनें रोक दी गईं। उस समय मऊ सदर से विधायक रहे मुख्तार पर दंगे भड़काने का आरोप लगा था. उन्हें एक हत्या के मामले में भी नामजद किया गया था, लेकिन गवाहों के मुकर जाने के बाद उन्हें बरी कर दिया गया था। क्या थी मऊ दंगों में मुख्तार की भूमिका, इस सीरीज की अगली कहानी हम आपको जल्द ही पब्लिश करेंगे.

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