आचार्य चाणक्य ने पिता और पुत्र के रिश्ते को लेकर कई महत्वपूर्ण बातें कही हैं।
आचार्य चाणक्य के अनुसार समाज में लोगों के बीच बैठकर पिता को कभी भी अपने बेटे की तारीफ नहीं करनी चाहिए।
जिस तरह किसी व्यक्ति का खुद की तारीफ करना सही नहीं है, उसी तरह पिता को अपने प्रतिभाशाली बेटे की तारीफ करने से बचना चाहिए।
पिता का कर्तव्य है कि वह अपने बेटे को अच्छी चीजों के लिए प्रोत्साहित करे लेकिन समाज में उसके गुणों का जिक्र करने से पूरी तरह बचें।
आचार्य चाणक्य के अनुसार दूसरों के सामने बेटे की तारीफ करना खुद की तारीफ करने जैसा है जो व्यक्ति को हंसी का पात्र बना सकता है।
आचार्य चाणक्य के अनुसार इन कारणों से कई बार समाज में लोगों का मजाक उड़ाया जाता है जिसका मानसिक रूप से नकारात्मक असर पड़ता है।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अगर आपके बेटे में अच्छे गुण हैं तो यह बिल्कुल भी जरूरी नहीं है कि उसके ये गुण दूसरों को बताए जाएं।
अगर आप समाज में अपने बेटे की बार-बार तारीफ करेंगे तो कई लोग आप पर भरोसा करना बंद कर सकते हैं। इसलिए ऐसा न करना ही बेहतर है।
यदि बेटा प्रतिभाशाली है तो वह स्वतः ही समाज में प्रसिद्ध हो जाता है। उसके गुणों के कारण ही समाज में घर का सम्मान होता है।