Agri : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) ने पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण से निजात दिलाने के लिए बायो डीकंपोजर बनाया था। यह बायो डीकंपोजर कुछ ही दिनों में पराली को खाद में बदलने की क्षमता रखता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके इस्तेमाल के दौरान प्रोटोकॉल का पूरा पालन किया जाना चाहिए, तभी इसका इस्तेमाल ज्यादा कारगर साबित होगा. Also Read:
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Agri: वैज्ञानिकों के मुताबिक, उचित उपयोग से न केवल पराली के प्रभावी निपटान में फायदा होगा बल्कि मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में भी मदद मिलेगी। उत्तर भारत में पराली जलाने की घटनाएं एक बड़ी समस्या बन गई हैं. इससे दिल्ली-एनसीआर समेत पड़ोसी राज्यों में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने से जुड़ा है।
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Agri: 20 दिन में करीब 70-80 फीसदी पराली खाद में बदल जाएगी.
Agari: इस साल नवंबर में एनसीआर के कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) बार-बार 400 और 450 की 'गंभीर' और 'गंभीर प्लस' सीमा को पार कर गया। वैज्ञानिकों का कहना है कि पूसा बायोडीकंपोजर एक माइक्रोबियल समाधान है जो लगभग 20 दिनों में लगभग 70-80 प्रतिशत पराली अवशेषों को खाद में बदल सकता है। Also Read:
Old Age Allowance: 3000 नये लाभापात्रों की एक साथ पेंशन स्वीकृत, देखें लिस्ट Agri: 4 कैप्सूल से 25 लीटर तक घोल बनाया जा सकता है।
Agri: पूसा इंस्टीट्यूट के मुताबिक, 4 बायो डीकंपोजर कैप्सूल से 25 लीटर तक बायो डीकंपोजर घोल बनाया जा सकता है. 25 लीटर घोल में 500 लीटर पानी मिलाकर ढाई एकड़ में छिड़काव किया जा सकता है. यह कुछ ही दिनों में पराली को सड़ाकर खाद में बदल सकता है। इसके लिए धान की कटाई के तुरंत बाद इसका छिड़काव करना चाहिए. छिड़काव के बाद पराली को जल्द से जल्द मिट्टी में मिलाना या जुताई करना बहुत जरूरी है। Also Read:
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Agri: समाधान कैसे बनता है?
Agri: घोल बनाने के लिए सबसे पहले 100 ग्राम गुड़ को 5 लीटर पानी में उबाला जाता है. ठंडा होने पर घोल में 50 ग्राम बेसन मिलाएं और कैप्सूल को घोल लें। इसके बाद इस घोल को 10 दिनों के लिए एक अंधेरे कमरे में रख दिया जाता है. पराली पर छिड़काव के लिए बायो डीकंपोजर घोल तैयार है. जब इस घोल को पराली पर छिड़का जाता है तो 15 से 20 दिन के अंदर पराली पिघलने लगती है. धीरे-धीरे यह पराली सड़ कर खेत में खाद बन जाएगी। इससे भूमि की उर्वरता बढ़ती है, जो आने वाली फसलों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। डिंकपोजर का छिड़काव करने के बाद अवशेष और फसल को पलटना भी जरूरी है। इससे पराली पिघलने की प्रक्रिया तेज हो जाती है। Also Read:
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