Farming: किसान धान की फसल में करें इन दवाओं का प्रयोग, फसल को होगा डबल फायदा
Farming News: धान उत्पादक किसानों के लिए यह जानना जरूरी है कि फसलों में कीट और रोगों का संक्रमण बढ़ सकता है, जिससे उत्पादन प्रभावित हो सकता है और किसानों को नुकसान हो सकता है। लेकिन सही समय पर किसान फसलों में लगने वाले रोग और कीटों पर नियंत्रण कर लेते हैं तो नुकसान से बचा जा सकता है।
पौधा संरक्षण पर्यवेक्षक बसंत नारायण सिंह के अनुसार, धान की बुआई के 10 से 15 दिनों में जिंक की कमी से होने वाला रोग फैल जाता है। इसके साथ ही, तना छेदक कीट का भी संक्रमण होता है, जिससें फसलों में बाहरी नुकसान भी होता है। इन सभी के दुष्प्रभाव से धान के उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है।
उन्होंने बताया कि जिंक की कमी से धान की फसल में इस रोग का प्रभाव देखने को मिलता है। रोग की पहचान इसकी पहचान के लिए किसान को धान के तने को बारीकी से देखना होता है। इस रोग में धान के तने के ऊपर वाला भाग सूखना शुरू हो जाता है और सुनहले रंग का होना शुरू हो जाता है और धीरे- धीरे यह पूरे पौधे में होने लगता है। इसके अलावा, तना रोग का भी संक्रमण होता है। इसमें कीट तने का कोमल भाग खा जाता है और पौधा मर जाता है।
इन दवाओं का करें इस्तेमाल इस रोग के निदान के लिए 0.5% जिंक सल्फेट और 0.2% बुझा हुआ चूना पानी में घोलकर रोगग्रस्त खेतों में हर 10 दिन में तीन बार फसल पर छिड़काव या स्प्रे करना चाहिए। किसान चाहें तो बुझे हुये चूने की जगह 2% यूरिया का भी प्रयोग कर सकते हैं।
वहीं, कीट अधिक होने पर हाइड्रोक्लोराइड 4G या फेफ्रेनिल 0.3 ग्राम 4 किलोग्राम प्रति एकड़ प्रयोग करें या फिर क्लोरोपीरीफोसि या हाइड्रोक्लोराइड 50 ग्राम एक मिलीलीटर दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इससे तना छेदक बीमारियों से छुटकारा मिल सकता है।