Fatehgarh Sahib: बलिदान सप्ताह-4 साहिबजादों की वीरता और बलिदान को याद करते हुए, जिन्होंने अपने धर्म परिवर्तन को प्रमाणित किया, बलिदान दिया लेकिन मुगल आक्रमणकारियों के सामने झुके नहीं।

 
Fatehgarh Sahib: बलिदान सप्ताह-4 साहिबजादों की वीरता और बलिदान को याद करते हुए, जिन्होंने अपने धर्म परिवर्तन को प्रमाणित किया, बलिदान दिया लेकिन मुगल आक्रमणकारियों के सामने झुके नहीं।
Fatehgarh Sahib: गुरु गोविंद सिंह की तीन पत्नियां थीं। 21 जून, 1677 को 10 वर्ष की आयु में उनका विवाह मतो जीत के साथ आनंदपुर से 10 किमी दूर बसंतगढ़ में हुआ। उन दोनों के 3 पुत्रों का नाम था - जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फतेह सिंह। 4 अप्रैल, 1684 को 17 वर्ष की आयु में उनका दूसरा विवाह माता सुंदरी के साथ आनंदपुर में हुआ। उनके एक बेटे का नाम अजीत सिंह था। 15 अप्रैल, 1700 को 33 वर्ष की आयु में उन्होंने माता साहिब देवन से विवाह किया। Aslo Read:  बलिदान सप्ताह- याद कीजिए चार साहिबजादों की वीरता और बलिदान को, जिन्होंने धर्म-परिवर्तन को नकारा, बलिदान दिया लेकिन मुगल आक्रांताओं के सामने नहीं झुके Fatehgarh Sahib: बलिदान सप्ताह-4 साहिबजादों की वीरता और बलिदान को याद करते हुए, जिन्होंने अपने धर्म परिवर्तन को प्रमाणित किया, बलिदान दिया लेकिन मुगल आक्रमणकारियों के सामने झुके नहीं। साहिबजादे और जोरावर सिंह व फतेह सिंहजी को दीवारों में चुना गया Fatehgarh Sahib: खालसा पंथ की स्थापना के बाद मुगल शासकों, सरहिंद के सूबेदार वजीर खां के आक्रमण के बाद 20-21 दिसंबर 1704 को मुगल सेना से युद्ध करने के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने परिवार सहित श्री आनंद पुर साहिब का किला स्थापित किया। सरसा नदी पर जब गुरु बिंद सिंह जी का परिवार जुदा हो रहा था, तो एक ओर जहां बड़े साहिबजादे गुरु जी के साथ चले गए, वहीं दूसरी ओर छोटे साहिबजादे जोर गोवार सिंह और श्रवण सिंह, माता गौरी जी के साथ रह गए। उनके साथ कोई सैनिक नहीं था और कोई उम्मीद नहीं थी कि वे मिल कैनी से वापस अपने परिवार के साथ मिलें। Aslo Read:  Horoscope of 19 December 2023: कर्क व कन्या राशि वालों की बढ़ेगी आमदनी, पढ़ें अन्य राशिफल गंगू नौकर की गद्दारी Fatehgarh Sahib: अचानक रास्ते में उन्हें गंगू मिल गया, जो किसी समय गुरु महल की सेवा करता था। गंगू ने उन्हें यह सहायक कर्मचारी दिए कि वह उन्हें अपने परिवार से मिलाएंगे और तब तक के लिए वे लोग अपने घर में रुकेंगे। माता गूरी जी और साहिबजादे गंगू के घर चले गए लेकिन वे गंगू की असलियत से वाक़िफ़ नहीं थे। गंगू ने लालच में आकर तुरंत वजीर खां को गोविंद सिंह की माता और छोटे साहिबजादों के यहां होने की खबर दे दी, जिसके बदले में वजीर खां ने उन्हें सोने की मोहरें के बारे में बताया। Fatehgarh Sahib: वज़ीर खांड्रा प्रतादना Fatehgarh Sahib: खबर है वजीर खां के सिपाही माता गौरी और 7 साल के साहिबजादा जोरावर सिंह और 5 साल के साहिबजादा शहाबुद्दीन सिंह को गिरफ्तार करने गंगू के घर पहुंच गए। उन्हें ताज़ा कोल्ड बुर्ज़ में रखा गया और उस ठंडी ठंड से बचने के लिए कपड़ों का एक टुकड़ा तक ना दिया गया। रात भर ठंड में ठिठुरने के बाद सुबह ही दोनों साहिबजादों को वजीर खां के सामने पेश किया गया, जहां भरी सभा में उन्हें इस्लाम धर्म मानने की बात कही गई थी। कहते हैं सभा में नारियल ही बिना किसी ऊंची चोटी के साहिबजादों ने ज़ोर से जयकारा लगाया "जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल"। ये देख सब दंग रह गए, वजीर खान के पूछने पर कोई ऐसा करने की बात भी नहीं कर सकता लेकिन गुरु जी की नन्ही जिंदगियां ऐसा करती हैं एक पल के लिए भी ना डरें। मौजूद मुलाजिम ने साहिबजादों को वजीर खां के सामने सिर झुकाकर सभा की पेशकश को कहा था, लेकिन इस पर उन्होंने जो जवाब दिया सबने चुप्पी साध ली। Also Read: Rajasthan Weather Update: प्रदेश में ठंड बढ़ी, जानें 23 दिसंबर से मौसम में क्या होगा बदलाव Fatehgarh Sahib: बलिदान सप्ताह-4 साहिबजादों की वीरता और बलिदान को याद करते हुए, जिन्होंने अपने धर्म परिवर्तन को प्रमाणित किया, बलिदान दिया लेकिन मुगल आक्रमणकारियों के सामने झुके नहीं। sahibzada
मुगलों का खज़ाना और निडर साहिबजादों की मौत
Fatehgarh Sahib: दोनों ने सिर उठाकर जवाब दिया कि 'हम अकाल पुरख और अपने गुरु पिता के अलावा किसी के सामने सिर नहीं झुकाते।' ऐसा कहकर हमने अपने दादा की कुरबानी को बर्बाद नहीं होने दिया, अगर हमने किसी के बारे में सोचा तो हमने अपने दादा को क्या जवाब दिया, धर्म के अनुयायी के नाम पर सिर कलम का सही उदाहरण दिया, लेकिन झुकाना नहीं'। वजीर खान ने दोनों साहिबजादों को काफी डराया, धमकाया और प्यार से भी इस्लाम की विचारधारा के लिए राज़ी करना चाहा, लेकिन दोनों का अपना फैसला अटल था। Aslo Read:  Also Read: PMFBY: फसल बीमा से जुड़ी समस्याओं का समाधान हुआ आसान, शुरू हुई ये सुविधा अंतिम में साहिबजादों को जिंदा दीवारों में चुना गया। दोनों साहिबजादों को जब दीवार पर चढ़ाया गया तब उन्होंने 'जपुजी साहिब' का पाठ शुरू किया और दीवार पूरी होने के बाद अंदर से जयकारा लगाना भी शुरू कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि वजीर खां की दीवार को तोड़ने के कुछ समय बाद यह देखने को मिलता है कि साहिबजादे अभी भी जीवित हैं या नहीं। तब दोनों साहिबजादों की कुछ सांसें बाकी थीं, लेकिन मुगल मुलाजिमों का खतरा अभी भी जिंदा था। उन्होंने दोनों साहिबजादों को गले से लगा लिया। दूसरी ओर साहिबदाजों की शहीदी की खबर से दुखी माता गूर्जी जी ने अकाल पुरख को इस गौरवमयी मृत्यु के लिए अनुभव और अपना प्राण त्याग दिया। Fatehgarh Sahib: 27 दिसंबर 1704 को छोटे भाई साहिबजादे और जोरावर सिंह व फतेह सिंहजी को दीवारों में चुना गया। जब यह हाल गुरुजी को पता चला तो उन्होंने औरंगजेब को एक जफरनामा (विजय का पत्र) लिखा, जिसमें उन्होंने औरंगजेब को चेतावनी दी कि कालसा पंथ को नष्ट करने के लिए तारा विनाश तैयार हो गया है।
साहिबज़ादा अजित सिंह की वीरता की कहानी
Fatehgarh Sahib: अजित सिंह श्री गुरु गोविंद सिंह के सबसे बड़े पुत्र थे। युद्ध में चमकते हुए अजित सिंह अतुलनीय वीरता का प्रदर्शन करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। गुरु जी द्वारा नियुक्त पाँच प्रेमियों ने अजित सिंह को चित्रों की कोशिश की कि वे ना। किया। ‌ रणभूमि में गए उन्होंने स्वयं अपने हाथों से अजित सिंह को युद्ध के लिए तैयार किया, अपने हाथों से उन्हें हथियार दिए और पांच सिखों के साथ मिलकर उन्हें किले से बाहर कर दिया। कहते हैं रणभूमि में जाते ही अजित सिंह ने मुगल फौज को थपथपाकर कांपने पर मजबूर कर दिया। अजित सिंह कुछ यूं युद्ध कर रहे थे मानो कोई बुराई पर खतरा पैदा हो रहा हो। Also Read: Family ID: अब घर बैठे परिवार पहचान पत्र से खुद हटा सकेंगे सदस्यों के नाम, जानें सरकार का नया नियम Fatehgarh Sahib: एक युद्ध के बाद अजित सिंह अपनी वीरता और साहस को देखते हुए मुगल फौजियों के पीछे भाग रहे थे लेकिन वह समय तब आया जब अजित सिंह का तीर खत्म हो गया था। जैसे ही विरोधियों को यह विश्वास दिलाया गया कि अजित सिंह का तीर खत्म हो रहा है, उन्होंने साहिबजादे को शामिल करना शुरू कर दिया। लेकिन इसी बीच अजित सिंह ने म्यान से तलवार और बहादुरी से मुगल फौजी का सामना करना शुरू कर दिया। कहते हैं तलवारबाजी में पूरी तरह से सिख फौजी में भी अजीत सिंह को कोई चुनौती नहीं दी जा सकती थी तो फिर ये मुगल फौजी उन पर कैसे रोक लगा सकते थे। अजित सिंह ने एक-एक करके मुगल सेना का संहार किया, लेकिन कुछ समय बाद ही उनकी तलवारें भी टूट गईं। 17 साल की उम्र में शहीद हुए फिर उन्होंने अपने मियां से ही दोस्ती शुरू कर दी, वे आखिरी सांस तक चले और फिर आखिरकार वह समय आया जब उनकी मौत हो गई और 17 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई।   Fatehgarh Sahib: बलिदान सप्ताह-4 साहिबजादों की वीरता और बलिदान को याद करते हुए, जिन्होंने अपने धर्म परिवर्तन को प्रमाणित किया, बलिदान दिया लेकिन मुगल आक्रमणकारियों के सामने झुके नहीं। फतेहगढ़ गुरूद्वारा साहिबजादे फतेह सिंह की स्मृति में बनाया गया है इनका नाम पंजाब के मोहाली शहर का उपनाम साहिबज़ादा अजित सिंह नगर रखा गया है। Also Read: Advisory for Farmers: गेहूं की फसल हो चुकी है 21 दिन से ज्यादा समय की तो आपके लिए ये खबर है बड़े काम की Fatehgarh Sahib: अजित सिंह से छोटे जुझार सिंह ने अपने बड़े भाई के बलिदान के नेतृत्व में पदचिन्हों पर रहते हुए अतुलनीय वीरता का प्रदर्शन करते हुए वीरगति को प्राप्त किया।

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