अच्छे लोग जल्दी क्यों मर जाते हैं?

प्राचीन कथाओं में ऐसा सुनने को मिलता है कि जब स्वर्ग में रहने वाले देवता, अप्सराएं आदि कोई गलती कर देते थे या अहंकार के कारण गलती कर देते थे, तो दंड स्वरूप भगवान उन्हें कुछ समय के लिए मृत्युलोक में जन्म लेने के लिए भेज देते थे। धर्मशास्त्र में पृथ्वी लोक को मृत्यु लोक कहा गया है, क्योंकि यहां भगवान के भक्त को छोड़कर सभी दुखी रहते हैं। कहा जाता है कि एक श्राप के कारण देवताओं और अप्सराओं को पृथ्वी पर जन्म लेकर अपने कर्मों का फल पृथ्वी पर ही भुगतना पड़ता है।

 
अच्छे लोग जल्दी क्यों मर जाते हैं?

प्राचीन कथाओं में ऐसा सुनने को मिलता है कि जब स्वर्ग में रहने वाले देवता, अप्सराएं आदि कोई गलती कर देते थे या अहंकार के कारण गलती कर देते थे, तो दंड स्वरूप भगवान उन्हें कुछ समय के लिए मृत्युलोक में जन्म लेने के लिए भेज देते थे। धर्मशास्त्र में पृथ्वी लोक को मृत्यु लोक कहा गया है, क्योंकि यहां भगवान के भक्त को छोड़कर सभी दुखी रहते हैं। कहा जाता है कि एक श्राप के कारण देवताओं और अप्सराओं को पृथ्वी पर जन्म लेकर अपने कर्मों का फल पृथ्वी पर ही भुगतना पड़ता है।


जो लोग अच्छे कर्म करते हैं उनकी आत्माओं को भगवान धरती पर सजा पूरी होने के बाद अपने पास या ऊंचे लोकों में भेज देते हैं। ईश्वर उनकी आयु को छोटा रखते हैं, ताकि जीवात्मा को मृत्युलोक में कम से कम कष्ट सहना पड़े और परमधाम में जाकर परम शांति व परम आनंद की प्राप्ति हो। यदि किसी जीवित आत्मा ने बहुत सारे बुरे कर्म किए हैं, बहुत से लोगों को सताया है और दुःख दिया है, तो उसे लंबे समय तक पृथ्वी पर रहकर अपना हिसाब-किताब चुकाना पड़ता है, इसलिए उस आत्मा को कुछ समय के लिए मृत्युलोक में जीवन दिया जाता है। बहुत समय से ऐसा विद्वानों का मत है। स्त्री-पुरुष की मंजिल मोक्ष प्राप्त करना है।


धार्मिक शास्त्रों की मानें तो मानव जीवन ईश्वर के शास्त्रों के अनुसार साधना करके जन्म और मृत्यु के बंधनों से मुक्ति पाकर मोक्ष प्राप्त करने के लिए है। धर्मशास्त्र के अनुसार जो लोग अच्छे कर्म करते हैं उन्हें जल्द ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। हालांकि हमारे धार्मिक ग्रंथों में इस संदर्भ में बहुत कुछ लिखा गया है। मृत्यु कई प्रकार से होती है, जिसमें रोग, शोक, अचानक दुर्घटना, बुढ़ापा आदि शामिल हैं। सरल भाषा में कहें तो शरीर से प्राण निकल जाना ही मृत्यु है। एक आध्यात्मिक साधक के लिए, मृत्यु एक जीवन से दूसरे जीवन में संक्रमण है। मृत्यु केवल शरीर का परित्याग है, व्यक्तिगत जीवन का अंत नहीं। इस तत्व को जानने वाले को परमज्ञानी कहा जाता है।

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