Haryana: सोनीपत की एथलीट किरण पहल की कहानी, जूते खरीदने के पैसे नहीं थे, नंगे पैर दौड़ीं और पेरिस ओलंपिक में किया क्वालीफाई

मंजिल वही पाते हैं जिनके सपनों में जान होती है, पंख किसी काम के नहीं होते, हौसले से उड़ान होती है। इस बात को हरियाणा के सोनीपत के एक छोटे से गांव की बेटी ने सच कर दिखाया है। सोनीपत के गुमड़ गांव की एथलीट किरण पहल की कहानी हर किसी के लिए भावुक और प्रेरणादायी है।
 
Haryana: सोनीपत की एथलीट किरण पहल की कहानी, जूते खरीदने के पैसे नहीं थे, नंगे पैर दौड़ीं और पेरिस ओलंपिक में किया क्वालीफाई

मंजिल वही पाते हैं जिनके सपनों में जान होती है, पंख किसी काम के नहीं होते, हौसले से उड़ान होती है। इस बात को हरियाणा के सोनीपत के एक छोटे से गांव की बेटी ने सच कर दिखाया है। सोनीपत के गुमड़ गांव की एथलीट किरण पहल की कहानी हर किसी के लिए भावुक और प्रेरणादायी है। संघर्ष के दिनों में ही उन्होंने अपने पिता को खो दिया था। फिर भी उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी और आज वह मुकाम हासिल कर लिया है जिसका सपना हर एथलीट देखता है।

किरण पहल ने इस साल होने वाले पेरिस ओलंपिक का टिकट हासिल कर लिया है। पंचकूला के सेक्टर-3 ताऊ देवी लाल स्टेडियम में चल रही 63वीं राष्ट्रीय अंतर राज्य सीनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में किरण पहल ने 400 मीटर फाइनल में 50.92 सेकंड में दौड़ पूरी कर पहला स्थान हासिल किया।

किरण का कहना है कि अगर वह ओलंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं करती तो खेलों से संन्यास ले लेती और नौकरी शुरू कर देती। किरण ने बताया कि बचपन में उन्हें दौड़ना बहुत पसंद था। गांव की दो लड़कियों को देखकर उन्होंने दौड़ना शुरू किया। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। रनिंग शूज खरीदने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए नंगे पैर दौड़ती थी। उसने कभी स्पोर्ट्स शूज नहीं देखे थे, इसलिए सुबह-शाम स्कूल शूज पहनकर दौड़ती थी।

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दौड़ने के लिए घरवालों से लड़ी

किरण पहल ने बताया कि उसके घरवालों ने उसे दौड़ने से मना कर दिया था। क्योंकि गांव वाले उसके घरवालों से कहते थे कि लड़कियों को बाहर मत भेजो। यह लड़कियों के लिए ठीक नहीं है। घरवालों के कहने पर उसने दौड़ना छोड़ दिया। कुछ दिन बाद उसने फिर घरवालों से दौड़ने की बात की, लेकिन घरवालों ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसके बाद वह घरवालों से लड़ने लगी और कहा कि अगर वे उसे दौड़ने देंगे, तभी वह पढ़ाई करेगी, नहीं तो नहीं पढ़ेगी। इसके बाद उसके पिता मान गए।

मुझे अपने पिता की याद आती है

पापा गांववालों को जवाब देने लगे और कहने लगे कि मुझे विश्वास नहीं होता कि यह मेरी बेटी है। मुझे विश्वास है कि यह मेरा बेटा है। पापा ने उसका खूब साथ दिया। गांव में अच्छी सुविधाएं नहीं होने के कारण उसने अपने पिता से बाहर कोचिंग लेने की बात की। लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण पापा ने मना कर दिया। हालांकि, कुछ समय बाद पापा ने उन्हें ट्रेनिंग के लिए रोहतक भेज दिया। किरण 2016 से रोहतक के राजीव गांधी स्टेडियम में प्रैक्टिस कर रही हैं। 2018 से उन्होंने मेडल जीतना शुरू किया। इसी बीच 2022 में पापा का निधन हो गया, तो थोड़ा मुश्किल था, लेकिन मैंने प्रयास जारी रखा। लेकिन, पापा की कमी खलती थी, क्योंकि उनसे मुझे काफी सपोर्ट मिला। आज अगर पापा को पता चलता कि उनकी बेटी ओलंपिक में खेलेगी, तो उन्हें बहुत खुशी होती।

कभी ट्रेनिंग नहीं छोड़ी
किरण पहल ने बताया कि वह सुबह छह बजे से साढ़े आठ बजे तक और शाम को पांच बजे से साढ़े सात बजे तक मैदान में प्रैक्टिस करती थीं। उन्होंने कभी प्रैक्टिस नहीं छोड़ी। अगर प्रैक्टिस छोड़तीं तो घरवाले उन्हें घर के कामों में लगा देते। इसलिए वह नियमित प्रैक्टिस करती थीं।

कोच ने दिया पूरा सहयोग
किरण पहल 2016 से रोहतक के राजीव गांधी स्टेडियम के कोच आशीष चिकारा से ट्रेनिंग कर रही हैं। कई बार आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो जाती थी कि खेल छोड़ने का मन करता था। लेकिन कोच ने कहा कि अगर खेल छोड़ना ही है तो छोड़ने से पहले कुछ अच्छा करो। कोच ने मुझे जूतों से लेकर ट्रेनिंग तक पूरा सहयोग दिया। मैंने इस चैंपियनशिप को अपने जीवन की आखिरी चैंपियनशिप समझकर खेला। आखिरकार मैं 400 मीटर में स्वर्ण पदक जीतने और ओलंपिक का टिकट पाने में सफल रहा।

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