तिरंगे में लिपटा पैतृक गांव में पहुंचा प्रदीप नैन का पार्थिव शरीर, सारे गाव की आंखे हुई नम

जींद के जाजनवाला गांव निवासी 28 वर्षीय प्रदीप नैन बलिदान हो गए
 
 तिरंगे में लिपटा पैतृक गांव में पहुंचा प्रदीप नैन का पार्थिव शरीर, सारे गाव की आंखे हुई नम

दक्षिण जम्मू कश्मीर के कुलगाम जिले के मुदरघम इलाके में आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में जींद के जाजनवाला गांव निवासी 28 वर्षीय प्रदीप नैन बलिदान हो गए थे। सोमवार सुबह उनका पार्थिव शरीर पैतृक गांव लाया गया, जहां राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।

पार्थिव शरीर जैसे ही गांव में पहुंचा तो पूरा गांव सिसक उठा। उनकी अंतिम विदाई में हजारों लोग पहुंचे। सभी भारत माता की जय, प्रदीप नैन अमर रहे के गगनभेदी नारे लगा रहे थे। सेना की गाड़ी में उनके पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेटकर लाया गया। गांव के श्मशान घाट में उनका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। पुलिस और सेना की टुकड़ी ने राजकीय सम्मान के साथ फायरिंग कर उन्हें अंतिम विदाई दी।

सुबह आठ बजे की प्रदीप नैन का शव जींद पहुंचा। उनके शव को सेना की गाड़ी में तिरंगे में लपेट कर लाया गया। उनकी गाड़ी के आगे-आगे बड़ी संख्या में लोग गाड़ियों व बाइकों पर चल रहे थे।

प्रदीप नैन के पिता बलवान सिंह ने कहा कि बेटे की शहादत पर उनको गर्व है। आसपास के गांवों के लोग भी काफी संख्या में गांव जाजनवाला पहुंचे और प्रदीप नैन की अंतिम यात्रा में शामिल हुए। लोगों ने अपने घरों की छतों पर चढ़कर शहीद के पार्थिव शरीर पर फूलों की वर्षा की।

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तीसरी बार में हुए थे भर्ती
प्रदीप नैन ने 12वीं कक्षा पास के बाद सेना में भर्ती होने के प्रयास शुरू कर दिए थे। वह कई बार फिजिकल पास कर लेते लेकिन लिखित परीक्षा को पास नहीं कर पाते। तीसरी बार उन्होंने लिखित परीक्षा पास की और 17 जनवरी 2015 में सेना में भर्ती हो गए।

प्रदीप नैन बलवान सिंह के इकलौते बेटे थे। कुलगाम में आतंकियों से मुठभेड़ में बलिदान हुए प्रदीप नौ वर्ष पहले सेना में भर्ती हुए थे। उनकी काबिलियत को देखते हुए उन्हें पैरा कमांडो बनाया गया था। बलिदानी प्रदीप नैन परिवार में अपने पीछे पिता बलवान सिंह, माता रामस्नेही और पत्नी मनीषा को छोड़ गए हैं। उनकी पत्नी गर्भवती हैं।

प्रदीप की घर में सभी से 15 दिन पहले फोन पर बात हुई थी। वह खुशी-खुशी बात कर रहा था। उसने प्रमोशन के साथ जुलाई में ही घर आने को कहा था, लेकिन यह सब सपना ही रह गया। अब तिरंगे में लिपटा हुआ आया। इतना कहते हुए प्रदीप के पिता बलवान सिंह का गला रुंध गया। अपने आपको संभालते हुए उन्होंने कहा कि उनका सभी कुछ खत्म हो गया। उनका इकलौता बेटा हमेशा के लिए दूर चला गया। वह दो महीने पहले छुट्टी काटकर घर से जल्दी ही वापस आने के लिए ड्यूटी पर गया था।

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