अंबाला लोकसभा सीट का अनोखा इतिहास: यहां से जीतने वाली पार्टी ने बनाई केंद्र में सरकार, 26 साल बाद टूटी परंपरा

18वीं लोकसभा आम चुनाव के नतीजों में कांग्रेस पार्टी ने 15 साल बाद अंबाला (एससी आरक्षित) लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की है। इससे पहले वर्ष 2009 में कांग्रेस की कुमारी शैलजा अंबाला लोकसभा सीट से सांसद बनी थीं। इस बार कांग्रेस उम्मीदवार वरुण चौधरी ने जीत दर्ज की है। अब 26 साल बाद ऐसा हो रहा है कि अंबाला की जनता द्वारा चुने गए व्यक्ति की केंद्र में सरकार नहीं होगी। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के अधिवक्ता एवं चुनाव विश्लेषक हेमंत कुमार का कहना है कि 26 साल बाद एक बार फिर ऐसा होगा कि अंबाला लोकसभा सीट से चुने गए सांसद भारतीय संसद में विपक्ष की बेंच पर बैठेंगे।

 
अंबाला लोकसभा सीट का अनोखा इतिहास: यहां से जीतने वाली पार्टी ने बनाई केंद्र में सरकार, 26 साल बाद टूटी परंपरा

18वीं लोकसभा आम चुनाव के नतीजों में कांग्रेस पार्टी ने 15 साल बाद अंबाला (एससी आरक्षित) लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की है। इससे पहले वर्ष 2009 में कांग्रेस की कुमारी शैलजा अंबाला लोकसभा सीट से सांसद बनी थीं। इस बार कांग्रेस उम्मीदवार वरुण चौधरी ने जीत दर्ज की है। अब 26 साल बाद ऐसा हो रहा है कि अंबाला की जनता द्वारा चुने गए व्यक्ति की केंद्र में सरकार नहीं होगी। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के अधिवक्ता एवं चुनाव विश्लेषक हेमंत कुमार का कहना है कि 26 साल बाद एक बार फिर ऐसा होगा कि अंबाला लोकसभा सीट से चुने गए सांसद भारतीय संसद में विपक्ष की बेंच पर बैठेंगे।

पिछले पांच लोकसभा आम चुनावों (1999 से 2019 तक) में अंबाला लोकसभा सीट से चुने गए सांसद की पार्टी ने केंद्र में सरकार बनाई है। वर्ष 1999 में जब भाजपा से रतन लाल कटारिया पहली बार अंबाला से लोकसभा सांसद बने थे, तब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा के नेतृत्व में केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन-एनडीए की सरकार बनी थी। इसी तरह, कांग्रेस की कुमारी शैलजा वर्ष 2004 और 2009 में लगातार दो बार अंबाला सीट से सांसद बनीं, जब केंद्र में डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए गठबंधन-1 और 2 की सरकार थी। शैलजा 10 साल तक केंद्र सरकार में मंत्री भी रहीं। उसके बाद वर्ष 2014 और 2019 में जब रतन लाल कटारिया लगातार दो बार अंबाला से सांसद बने, तब केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी। उन्होंने बताया कि पिछले 72 सालों में ऐसा सिर्फ पांच बार हुआ है,

जब अंबाला लोकसभा सीट से उस राजनीतिक दल का कोई सांसद चुना गया और उनकी पार्टी केंद्र में सरकार नहीं बना पाई। ये हैं पांच बार के पूर्व सांसद, जो विपक्ष में बैठे। वर्ष 1967 में जब चौथी लोकसभा के आम चुनाव हुए, तो अंबाला लोकसभा सीट से भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार सूरजभान ने कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार पी. वटी को करीब नौ हजार वोटों के अंतर से हराया और पहली बार इस सीट से सांसद चुने गए। हालांकि, लोकसभा आम चुनाव के बाद इंदिरा गांधी के नेतृत्व में देश में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी।

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1980 में सातवें लोकसभा आम चुनाव में अंबाला संसदीय सीट से जनता पार्टी के उम्मीदवार सूरजभान ने कांग्रेस के उम्मीदवार सोमनाथ को करीब दो हजार वोटों के अंतर से हराया और दूसरी बार इस सीट से सांसद चुने गए। उस समय भी इंदिरा गांधी के नेतृत्व में केंद्र में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी थी 1989 में नौवें लोकसभा आम चुनाव में अंबाला लोकसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार राम प्रकाश ने भाजपा के सूरजभान को करीब 23 हजार वोटों के अंतर से हराया और तीसरी बार इस सीट से सांसद चुने गए। उस समय केंद्र में वीपी सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा-वाम मोर्चा की सरकार बनी जिसे भाजपा ने बाहर से समर्थन दिया था।

1996 में चौथे लोकसभा आम चुनाव में जब भाजपा के सूरजभान कांग्रेस के शेर सिंह को 87 हजार वोटों से हराकर अंबाला सीट से चौथी बार सांसद चुने गए, तब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा केंद्र में सत्ता में आई, लेकिन यह सरकार केवल 13 दिन ही चल सकी। जून 1996 में पहले एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व में और फिर अप्रैल 1997 में आईके गुजराल के नेतृत्व में केंद्र में संयुक्त मोर्चा सरकार बनी। 1998 में पांचवीं बार हुए 12वीं लोकसभा आम चुनाव में बसपा के अमन कुमार नागरा ने भाजपा के सूरजभान को मात्र 2864 वोटों से हराकर पहली बार अंबाला लोकसभा सीट से सांसद बने। उस समय केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी और भाजपा के नेतृत्व में पहली एनडीए सरकार बनी, जो केवल 13 महीने ही चल सकी।

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