Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य के अनुसार ऐसे लोगों से भगवान कभी नहीं होते हैं प्रसन्न

 
Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य के अनुसार ऐसे लोगों से भगवान कभी नहीं होते हैं प्रसन्न
Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य द्वारा दी गई नीतियां आज भी उतनी ही कारगर हैं जितनी पहले थीं। इनका पालन करने से व्यक्ति सदैव सफलता के शिखर पर पहुंचता है। आचार्य चाणक्य द्वारा 'चाणक्य नीति' में लिखे गए सूत्र देखने में भले ही छोटे लगते हों लेकिन उनका प्रभाव बहुत गहरा साबित होता है। जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए इनका अध्ययन बहुत जरूरी है। तो आइए जानते हैं आचार्य चाणक्य के कुछ नीति सिद्धांत। Also Read: Chanakya Niti: अगर आपके अंदर हैं कुत्ते वाले ये 4 गुण तो महिलाएं हमेशा रहेंगी रात को खुश
Chanakya Niti: ज्ञान क्रिया से आता है तत्वज्ञानं कार्यमेव प्रकाशयति
Chanakya Niti: अर्थ: कर्म करने से ही तत्वज्ञान को समझा जा सकता है। जब तक कर्म नहीं किया जाता, प्रयत्न नहीं किया जाता, साधना नहीं की जाती, जब तक पूर्ण मनोयोग से शास्त्रों का अध्ययन नहीं किया जाता, तब तक ईश्वरीय शक्ति को नहीं समझा जा सकता। ईश्वरीय शक्ति को समझने के लिए सबसे पहले अपने कर्म को सुधारना बहुत जरूरी है। यदि किसी व्यक्ति के कर्म ठीक नहीं हैं तो उसे ईश्वर को पाने में असफलता का सामना करना पड़ता है।
Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य के अनुसार ऐसे लोगों से भगवान कभी नहीं होते हैं प्रसन्न
Chanakya Niti: आचरण धर्म से बड़ा है धर्मादपि व्यवहारो गरीयन्।
Chanakya Niti: अर्थ: आचरण के बिना धर्म का प्रचार नहीं हो सकता। आचरण के अभाव में धर्म का प्रभाव जनमानस पर नहीं पड़ सकता। चाणक्य नीति के अनुसार जिस व्यक्ति का आचरण सही नहीं होता वह अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करने में हमेशा असफल रहता है और भगवान भी उससे प्रसन्न नहीं होते हैं. Also Read: Crop Compensation: हरियाणा में जारी हुआ फसल बीमा क्लेम, क्या आपके खाते में पहुँच चुकी है राशि
'कर्महीन' व्यक्ति दुःख भोगता है। न स्वर्ग की मृत्यु पर दुःख होता है।
अर्थ: जिस व्यक्ति का आचरण और कर्म पतन की ओर ले जाए, समझो उसका स्वर्ग गिर गया। जिस व्यक्ति में अच्छे आचरण और कर्मों का अभाव होता है, उसे स्वर्ग से गिरने से भी बदतर पीड़ा होती है।
Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य के अनुसार ऐसे लोगों से भगवान कभी नहीं होते हैं प्रसन्न
Chanakya Niti: शरीर का मोह छूटता नहीं देहि देहं त्यक्त्वा ऐन्द्रपदं न वच्छति।
अर्थ: इसका अर्थ यह है कि मनुष्य अपने वर्तमान जीवन में शरीर के मोह में इतना डूब जाता है कि वह इस भौतिक शरीर को त्यागकर इंद्र के सर्वोच्च पद को प्राप्त करने की इच्छा भी नहीं रखता है, अर्थात वह वश में होकर परम सुख प्राप्त कर लेता है। इंद्रियां। की ओर जाना नहीं चाहते. Also Read: Chanakya Niti: चाणक्‍य की ये नीति गरीबों को भी बना देगी अमीर, बस कभी न करें ये गलती

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