The story of ahoi mata:अहोई माता की कथा संतान की रक्षा और समृद्धि के लिए
अहोई माता की आरती, उतारे सब दुख-दर्द की बारी।
अहोई अष्टमी व्रत की कथा:
सेवे राम सीता के पैर, पाए सुख-समृद्धि अनिवार।
अहोई माता की आरती, उतारे सब दुख-दर्द की बारी।
कथा:
एक स्त्री अपने ससुराल में रहती थी। उसकी सास उसे बहुत परेशान करती थी। एक दिन सास ने उसे अपने मायके जाने के लिए कहा। रास्ते में, उसे एक स्याही वाला भेड़ मिला, जिसके सात बछड़े थे। वह उसे बहुत प्यारी लगी।
वह भेड़ और बछड़ों को देखकर वह अपने मायके पहुंची और अपनी मां को सारी बात बताई। मां ने उसे समझाया कि तुम्हारी सास के कहने पर मायके आना ठीक नहीं है। तुम वापस ससुराल जाओ और अपने पति की सेवा करो।
लेकिन वह नहीं मानी और वहीं रुक गई। उसी रात, स्याही वाले भेड़ के सातों बछड़े मर गए। इससे उसे बहुत दुख हुआ और वह अपने ससुराल वापस चली गई। वहां जाकर उसने अपनी सास को सारी बात बताई। सास ने उसे समझाया कि तुमने मायके जाकर अपने भाग्य को खराब कर लिया।
इसके बाद, उस स्त्री के सारे बच्चे मरने लगे। तब उसने अहोई माता की पूजा की और व्रत रखा। इससे उसकी संतान सुरक्षित हो गई।
व्रत विधि:
अहोई अष्टमी के दिन सुबह नहले धुले कपड़े पहनकर, भगवान शिव, माता पार्वती और अहोई माता की पूजा करें।
- सूर्योदय से पहले उठें।
- नहाए-धोए कपड़े पहनें।
- पूजा स्थान पर अहोई माता की तस्वीर या मूर्ति रखें।
- अहोई माता को जल, रोली, अक्षत, फूल, और फल चढ़ाएं।
- व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
- सूर्यास्त के बाद, चंद्रमा को अर्घ्य दें।
- रात में भोजन करें।
व्रत के नियम:
- व्रत के दिन काले कपड़े न पहनें।
- व्रत के दिन किसी भी प्रकार का शोक नहीं मनाना चाहिए।
- व्रत के दिन झूठ नहीं बोलना चाहिए।
- व्रत के दिन दान करना चाहिए।