Vijaya Ekadashi vrat katha: इस साल विजया एकादशी 6 मार्च को मनाई जाएगी। विजया एकादशी पर इस साल ग्रहों को अद्भुद संयोग बन रहा है। इस साल विजया एकादशी पर बुध का राशि परिवर्तन हो रहा है। इसके बाद शुक्र का राशि परिवर्तन इसके अगले दिन महाशिवरात्रि से पहले हो रहा है। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से पहले सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी का एक घड़ा बनाया जाता है। उस घड़े में जल भरकर उसमें पांच पल्लव रखना चाहिए। वे इस बार विजया एकादशी बहुत खास है। इस दिन व्रत का संकल्प करके एकादशी व्रत की कथा पढ़नी चाहिए।
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श्री भगवान ने कहा हे राजन्- फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य को विजय प्राप्त होती है। यह सभी व्रतों में सर्वोत्तम व्रत है। इस विजया एकादशी के माहात्म्य को सुनने और सुनाने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। एक समय की बात है, देवर्षि नारदजी ने जगतपिता ब्रह्माजी से कहा, महाराज! आप मुझे फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी विधि बताइए। ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद! विजया एकादशी का व्रत नये-पुराने पापों का नाश करने वाला है।

Vijaya Ekadashi vrat katha: विजया एकादशी की विधि
इस विजया एकादशी की विधि मैंने कभी किसी को नहीं बतायी। यह सभी मनुष्यों को विजय प्रदान करता है। त्रेता युग में जब मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्रजी को चौदह वर्ष का वनवास हुआ, तब वे श्री लक्ष्मण तथा सीताजी सहित पंचवटी में निवास करने लगे। उधर जब दुष्ट रावण ने सीताजी का हरण कर लिया तो इस समाचार से श्री रामचन्द्रजी और लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हो गए और सीताजी की खोज में निकल पड़े।
Vijaya Ekadashi vrat katha: हनुमानजी ने लंका जाकर सीताजी का पता लगाया
घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न जटायु के पास पहुँचे तो जटायु उन्हें सीताजी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्ग चला गया। कुछ समय बाद उनकी सुग्रीव से मित्रता हो गई और उन्होंने बाली का वध कर दिया। हनुमानजी ने लंका जाकर सीताजी का पता लगाया और उनसे श्री रामचन्द्रजी और सुग्रीव की मित्रता का वर्णन किया। वहां से लौटकर हनुमानजी भगवान राम के पास आये और सारा समाचार सुनाया। श्री रामचन्द्रजी ने वानर सेना सहित सुग्रीव की सम्पत्ति से लंका की ओर प्रस्थान किया। जब श्री रामचन्द्रजी समुद्र से किनारे पर पहुँचे तो मगरमच्छ आदि से भरे हुए उस विशाल समुद्र को देखकर उन्होंने लक्ष्मणजी से कहा कि हम इस समुद्र को कैसे पार करेंगे।
Vijaya Ekadashi vrat katha: रामचन्द्रजी वकदालभ्य ऋषि के पास गये
श्री लक्ष्मण ने कहा, हे पुराण पुरूषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं, आप सब कुछ जानते हैं। यहां से आधा योजन दूर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नामक ऋषि रहते हैं। उन्होंने बहुत से ब्रह्मा देखे हैं, तुम उनके पास जाओ और उनका समाधान पूछो। लक्ष्मणजी के ऐसे वचन सुनकर श्री रामचन्द्रजी वकदालभ्य ऋषि के पास गये और उन्हें प्रमाण देकर बैठ गये।

Vijaya Ekadashi vrat katha: सोने चांदी तांबे या मिट्टी का एक घड़ा बनाएं
इस व्रत की विधि यह है कि दशमी के दिन सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी का एक घड़ा बनाएं। उस घड़े में जल भरकर उसमें पांच पल्लव रखकर वेदी पर रखें। उस घड़े के नीचे सतनजा रखें और ऊपर जौ रखें। उस पर भगवान श्री नारायण की स्वर्णमयी मूर्ति स्थापित करें। एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान की पूजा करें।
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इसके बाद दिन घड़े के सामने बैठकर भगवान का ध्यान रखें करें और रात्रि को भी इसी प्रकार बैठकर जागरण करें। द्वादशी के दिन दैनिक नियमों से निवृत्त होकर वह बर्तन ब्राह्मण को दे दें। हे राम! यदि आप भी सेनापतियों के साथ इस व्रत को करेंगे तो आपकी अवश्य ही विजय होगी। श्री रामचन्द्रजी ने ऋषि के कथनानुसार यह व्रत किया और इसके प्रभाव से राक्षसों पर विजय प्राप्त की।