Editorial Article: पराली जलाने की समस्या और सरकारी मशीनरी का फेल सिस्टम, जानें सरकारी योजनाओं की समीक्षा

हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए सरकारी प्रयास क्यों असफल हो रहे हैं? किसानों के दर्द और समाधान पर चर्चा
 
Journalist Hanuman Poonia Editorial Article

केंद्र की CRM योजना के तहत आठ यंत्रों पर सब्सिडी, हरियाणा में सिर्फ दो।
SMAM योजना का करोड़ों का बजट लेप्स होता है।
बेलर मशीन की कीमत और पराली गांठ प्रबंधन की समस्याएं।
कस्टम हायरिंग सेंटर की स्थापना में हरियाणा की विफलता।
किसानों की सुप्रीम कोर्ट तक याचिका: सब्सिडी पर न्याय की मांग।

Editorial: पिछले करीब 1 महीने से उत्तर भारत के विशेष तौर पर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली का पर्यावरण भयंकर दूषित है और इसका प्रमुख कारण किसानों द्वारा जलाई जा रही पराली को माना जा रहा है। दरअसल हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट की तरफ से राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को बार-बार चेतावनी और आदेश जारी किए जा रहे हैं कि इस पर नियंत्रण किया जाए। इन आदेशों के बाद राज्य सरकार  अपने सत्र पर प्रयास कर रही है लेकिन कामयाबी नहीं मिल रही है।

 

हरियाणा में पराली जलाने पर सख्ती: जुर्माना, FIR और फसल खरीदने पर रोक

बात यदि हरियाणा की करें तो हरियाणा के अंदर इस बार किसान पराली ना जलाएं उसके लिए किसानों पर कई तरह के अंकुश लगाए गए हैं, जिसके अंदर किसानों पर पहले सिर्फ जुर्माने का प्रावधान था वहीं अब  FIR दर्ज करके किसानों को जेल में डालने का काम भी किया जा रहा है। वहीं किसानों को उनकी आगामी 2 साल तक की फसल सरकार नहीं खरीदेगी, ऐसे आदेश भी दिए गए हैं। लेकिन आज के इस लेख में हम उन प्वाइंटों के बारे में आपको अवगत करवाने वाले हैं जिससे वास्तव में उन कारणों का पता लगेगा जिनकी वजह से किसान पराली जलाने को मजबूर हैं।

 

पराली प्रबंधन के लिए मशीनरी सब्सिडी: केंद्र और राज्य सरकार की नीतियां

सबसे पहले पॉइंट की अगर हम बात करें तो इसके अंदर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (Farmers Welfare Department) जिसकी जिम्मेवारी है कि किसानों को उचित मशीनरी सब्सिडी पर उपलब्ध करवाएं ताकि पराली का प्रबंधन किया जा सके। केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित CRM स्कीम के तहत कुल आठ तरह की पराली प्रबंधन मशीनरी (Straw Management Machinery) जिसमें सुपर सीटर, बेलर, मल्चर, रिवर्सिबल एमबी प्लो, स्लैशर, जीरो ड्रिल, हे रैक और रोटावेटर आदि किसानों को अनुदान पर उपलब्ध करवाने की गाइडलाइन है। इसके अलावा राज्य स्तर पर विभाग कोई और मशीन अगर पराली प्रबंधन (Straw Management) में कुशल हो तो उसको अनुदान पर किसानों को उपलब्ध करवाने को केंद्र सरकार द्वारा अधिकृत है। परंतु हरियाणा राज्य में महज दो तरह के ही उपकरण सुपर सीटर और बेलर पर ही सब्सिडी दी जा रही है। जबकि केंद्र सरकार की इस स्कीम के तहत अन्य राज्यों में उपरोक्त सभी आठ तरह की मशीनों पर सब्सिडी देने का प्रावधान रखा हुआ है।

हरियाणा-राजस्थान सहित देश-विदेश की हर खबर सबसे पहले पाने के लिए हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़े 👇👇 ज्वाइन करें

हरियाणा में कृषि यंत्रों पर सीमित सब्सिडी: किसानों की समस्या

प्रदेश के कृषि विभाग के उच्चाधिकारियों का इन 2 कृषि यंत्रों (Agricultural Machinery) पर ही सब्सिडी देने का कारण सिर्फ यह बताया जा रहा है कि बाकी कृषि यंत्र किसान नहीं खरीदते हैं। अब इसमें अगर हम बात करें तो सुपर सीडर आज के दिन लगभग सभी गांव के अंदर काफी संख्या में है और वह करीब 3 लाख रुपए की मशीनरी है जबकि बेलर करीब 15 लाख रुपए की मशीन है। ऐसे में सीधा-सीधा हम कह सकते हैं कि कृषि यंत्रीकरण और किसान कल्याण विभाग 15 लाख रुपए की इस मशीनरी को बनाने वाली चुनिंदा कंपनियों को अप्रत्यक्ष तौर पर लाभ पहुंचा रहे है और ऐसा बिना किसी भ्रष्ट मंशा के तो सम्भवत नहीं किया जा रहा।

बेलर मशीन और सुपर सीडर: सब्सिडी में भेदभाव और किसानों का असंतोष

सुपर सीडर का तो हम मान लेते हैं कि धान की पराली का प्रबंध अच्छे तरीके से हो जाता है क्योंकि उसकी कटिंग होकर जमीन में यह कचरा समा जाता है लेकिन बेलर से बड़ी-बड़ी गांठे पराली की बनाई जाती है और उनमें से कुछ छोटे तरह की गांठें करीब 40 किलोग्राम की होती है और कई बड़ी गांठें बनाई जाती है जिसका वजन करीब 6 क्विंटल होता है और सरकार की तरफ से उस 6 क्विंटल वजन की गांठ को उठाकर कहीं लोड करने या खेत के एक कोने से दूसरे कोने में रखने के लिए सब्सिडी पर किसी भी यंत्र को मुहैया नहीं करवाया जा रहा है।

पराली की गांठों का प्रबंधन: यंत्रों की अनुपलब्धता से बढ़ता संकट

ऐसे में इन दिनों जो पराली जलाने के मामले सामने आ रहे हैं उसमें अधिकतर मामले ऐसे है कि किसी किसान के अगर 5 एकड़ में धान था और उसने बेलर से 5 एकड़ की गांठें बना ली तो उनको एक एकड़ में रखकर उसको आग लगा दी जाती है ताकि उस किसान को महज एक एकड़ में आग लगाने का ही जुर्माना भुगतना पड़े। अब यदि कृषि एवं किसान कल्याण विभाग हरियाणा के अधिकारी निष्ठापूर्वक पर्यावरण संरक्षण को लेकर सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का इंप्लीमेंटेशन अच्छे से करते हैं तो न केवल पर्यावरण संरक्षण होगा बल्कि किसान भी खुश होंगे और उनको कई तरह के कृषि यंत्र सब्सिडी (Agricultural Equipment Subsidy) पर मिल जाएंगे।

सरकार की योजनाओं के सही क्रियान्वयन से पर्यावरण और किसान दोनों को लाभ

यहां एक बात और बताना भी जरूरी हो जाता है कि हरियाणा में कृषि विभाग के उच्चाधिकारियों की उदासीनता के चलते ही पिछले वित वर्ष में SMAM स्कीम का करोड़ों रुपए  का बजट लेप्स हो गया था वहीं CRM स्कीम का करीब 100 करोड़ रुपए CADA को देना पड़ा था। जबकि SMAM योजना में 50 हज़ार से अधिक किसानों ने कृषि यंत्रों पर अनुदान के लिए आवेदन किया था। वो जरूरतमंद किसान सब्सिडी की बाट देखते रहे और लापरवाह अधिकारियों की उदासीनता के चलते केंद्र से आबंटित पैसा बिना प्रयोग वापस करना पड़ाl

SMAM योजना और CRM स्कीम का बजट लेप्स: सरकारी उदासीनता

इसके अलावा बात यदि इस साल की करें तो SMAM योजना के तहत किसानों को कृषि यंत्रों (Agricultural Machinery) पर सब्सिडी इस वित वर्ष में अभी तक नहीं मिली है और विभाग की कार्य प्रणाली को देखकर लगता है कि संभवतः इस वर्ष भी SMAM योजना के बजट को लेप्स ही कर दिया जाएगा। अब इसके पीछे विभाग की क्या मंशा है उसका आप सहज तरीके से अंदाजा लगा सकते हैं।

कस्टम हायरिंग सेंटर की कमी: हरियाणा में किसानों के लिए बड़ी समस्या

कृषि यंत्रीकरण और किसान कल्याण विभाग (Farmers Welfare Department) की लापरवाही और निष्क्रियता का एक उदाहरण यह भी है कि पिछले 2 साल से हरियाणा के अंदर कस्टम हायरिंग सेंटर (Custom Hiring Center) की स्थापना नहीं हो रही है जबकि देश के अन्य राज्यों में कस्टम हायरिंग केंद्र (Custom Hiring Center) स्थापित हो रहे हैं। यहां बता दें कि कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित करने में सरकार की तरफ से 90% तक की सब्सिडी दी जाती थी जो कि फिलहाल पिछले 2 वर्ष से हरियाणा में बंद है। कस्टम हायरिंग सेंटर (Custom Hiring Center) से किसानों को आधुनिक मशीनरी बिना व्यक्तिगत निवेश के जरूरत के समय उपलब्ध हो जाती है परन्तु इस तरफ़ विभाग का कोई ध्यान नहीं है।

कृषि यंत्र सब्सिडी के लिए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने को मजबूर किसान

सब्सिडी वाले इस मामले को लेकर किसान सुप्रीम कोर्ट तक गए हैं। जिसकी पीटीसन में बाकायदा लिखा है कि किसानों को कम से कम कृषि यंत्रों (Agricultural Machinery) पर सब्सिडी के लिए तो यहां सुप्रीम कोर्ट तक नहीं आना चाहिए था। यहां यह भी बता दें कि देश के नागरिक जिनका यह मूलभूत अधिकार है कि वह अच्छे पर्यावरण में अपना जीवन जिए, जिसकी पालना सरकारों को करनी चाहिए।

कृषि विभाग की लापरवाही और किसानों के संभावित आंदोलन का खतरा

हरियाणा जैसे राज्य में जिसने हरित क्रांति (Green Revolution) और कृषि यंत्रीकरण को एक दिशा दिखायी, विभाग की उदासीनता खेती और किसानों की आय बढ़ाना तो दूर, पत्तन की तरफ़ ले जा रही है। और अगर ऐसा ही चलता रहा तो संभवतः एक बड़े आंदोलन का कारण भी इस विभाग के अधिकारी और उनकी निरंकुशता बन सकता है।

                                                                                                                    ✍️✍️ पत्रकार हनुमान पूनिया

Tags

Around the web