नाथूसरी चौपटा पंचायत समिति चेयरमैन पद की लड़ाई और राजनीतिक उठापटक

पंचायत समिति के सत्ता संघर्ष में मीनू बैनीवाल और सूरजभान बुमरा के बीच तकरार। जानिए, कैसे राजनीति और समाजसेवा का संतुलन बिगड़ता जा रहा है।
 
नाथूसरी चौपटा पंचायत समिति चेयरमैन पद की लड़ाई और राजनीतिक उठापटक

नाथूसरी चौपटा पंचायत समिति में चेयरमैन सूरजभान बुमरा के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव।
कप्तान मीनू बैनीवाल और उनकी टीम की राजनीति पर सवाल।
सामाजिक कार्यों और राजनीतिक फैसलों में संतुलन की कमी।
भ्रष्टाचार और आरोपों के बीच पंचायत समिति में सत्ता संघर्ष।
भाजपा और इनेलो की अप्रत्यक्ष भूमिका पर चर्चाएं।

किसी भी लाइन को छोटा करने के लिए जरूरी नहीं कि उसको काट दिया जाए, यदि उसके बराबर में बड़ी लाइन खींच दी जाए तो पहले वाली लाइन अपने आप छोटी हो जाती है। यह बात आज के दिन हरियाणा के सिरसा में सटीक साबित हो रही है। मैं चर्चा कर रहा हूं पंचायत समिति चेयरमैन नाथूसरी चौपटा के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव की। 11 तारीख को 22 सदस्यों के हस्ताक्षर का एक पत्र जिला उपायुक्त को दिया गया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि चेयरमैन उनकी सहमति के बिना कार्य कर रहे हैं और भ्रष्टाचार का भी आरोप लगाया था। उसके बाद 20 तारीख को एडीसी सिरसा की मौजूदगी में बैठक बीडीपीओ ने बुलाई और उसमें कुल 22 सदस्य पहुंचे। जिसमें से 12 सदस्यों ने सूरजभान बुमरा को ही चेयरमैन रखने पर सहमति जताई और इस फैसले के अनुरूप सूरजभान बुमरा को फिर से चेयरमैन नियुक्त कर दिया गया।


    अब यहां उपरोक्त सामान्य जानकारी है लेकिन इस अविश्वास प्रस्ताव को लाने और सूरजभान बुमरा को चेयरमैन के पद पर बनाए रखने में दो राजनैतिज्ञों की अहम भूमिका अप्रत्यक्ष तौर पर रही है। जिसमें पहले हैं कप्तान मीनू बैनीवाल और दूसरे अभय सिंह चौटाला। कप्तान मीनू बैनीवाल को खुद के ही समर्थक ने विधानसभा चुनाव के दौरान आंख दिखाते हुए इनेलो का पल्लू पकड़ लिया था और आरोप लगाया था कि कप्तान मीनू बैनीवाल की टीम उसे स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं करने दे रही थी और वह एक महज रबर स्टैंप की हैसियत में वहां पर रहा।


    यह सभी को ज्ञात है कि पंचायत समिति नाथूसरी चौपटा के गठन के करीब डेढ़ साल तक नाथूसरी चौपटा की चेयरमैनी कप्तान मीनू बैनीवाल की टीम ही चला रही थी लेकिन अब विधानसभा चुनाव में आचार संहिता लगने से पहले पंचायत समिति नाथूसरी चौपटा के चेयरमैन और सेक्रेटरी की भूमिका में रहे बीडीपीओ नाथूसरी चौपटा ने मिलीभगत करके पंचायत समिति के करोड़ों रुपए का बजट ग्राम पंचायतों को बगैर कप्तान मीनू बैनीवाल की टीम की सहमति के ट्रांसफर कर दिया गया। अब आरोप व चर्चा तो यह भी है कि इसमें चेयरमैन सूरजभान बुमरा और बीडीपीओ ने रिश्वत खाई है लेकिन वह महज आरोप है, इस पर हम नहीं जाना चाहेंगे। लेकिन इस वक्त से सूरजभान बुमरा कप्तान मीनू बैनीवाल की टीम को खटकने लगा और इसको हटाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए गए।

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    वहीं इसी समय सीमा के दौरान कप्तान मीनू बैनीवाल समाजसेवी की भूमिका में रहते हुए चर्चा है कि लाखों रुपए की घोषणाएं विकास कार्यों के रूप में न केवल कर दी बल्कि उसका कार्य भी शुरू करवा दिया गया, जिसका पैसा कप्तान मीनू बैनीवाल की टीम के कुछ सदस्यों ने इस उम्मीद में लगा दिया कि विधानसभा चुनाव के जस्ट बाद पंचायत समिति के चेयरमैन सूरजभान बुमरा को हटाकर नए चेयरमैन खुद का बना लेंगे तो यह बजट हम पास करवा लेंगे। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इससे पहले भी मौजूदा पंचायत समिति के गठन से पूर्व कप्तान मीनू बैनीवाल की तरफ से लाखों रुपए के विकास कार्यों की घोषणा और विकास कार्य करवाए गए थे जिन्हें पहले निजी कोष से बताया गया लेकिन बाद में यह बजट पंचायत समिति के फंड से निकाल लिया गया था। खैर यह राजनीति का एक हिस्सा आज के समय में है लेकिन अब यहां पर कप्तान मीनू बैनीवाल की तरफ से राजनीतिक अपरिपक्वता का प्रदर्शन किया गया है सूरजभान बुमरा के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव डलवाकर।


    अगर कप्तान मीनू बैनीवाल के पास अच्छा राजनीतिक सलाहकार होता तो वह ऐसा करने से जरूर रोकता और समाज में जो छवि उनकी बनी हुई है उसके अनुरूप यदि कप्तान मीनू बैनीवाल पब्लिक में कहते कि उन्होंने एक गैर राजनीतिक और गरीब परिवार के व्यक्ति को सर्वसम्मति से चेयरमैन बनवा दिया, अब वह चेयरमैन उनके साथ रहता है या उनके खिलाफ जाता है वह उसका खुद का विवेक है। अगर यहां पर कप्तान मीनू बैनीवाल की तरफ से इमोशनल कार्ड खेला जाता तो समाज में उनकी वाहवाही होती और मीडिया के सवालों का जवाब भी वह यह कहते हुए दे सकते थे कि वह बनाने वालों की भूमिका में है, हटाने वालों की नहीं।


    खैर ऐसा नहीं हुआ और न केवल ऐसा नहीं कर पाए बल्कि हटाने के प्रक्रिया में भी वह कामयाब नहीं हो पाए। यह उनके लिए काफी ज्यादा नुकसानदायक समझा जा रहा है। अब ऐसे में राजनीति अगर उनको लंबी करनी है और ऐलनाबाद विधानसभा या सिरसा जिला में ही राजनीति करनी है तो फिर अपना राजनीतिक तरीका बदलना होगा। 


    यहां पर एक बात और भी हम कहना चाहेंगे कि अभय सिंह चौटाला हालांकि इस पूरे मामले में अप्रत्यक्ष तौर पर भूमिका निभा रहे थे क्योंकि चेयरमैन नियुक्त करने के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए सूरजभान बुमरा ने जैसे बताया था कि मीटिंग कैंसिल करके आगे तारीख लेने की बात मीटिंग के दौरान चल रही थी, तो ऐसे में अभय सिंह चौटाला की भूमिका के चलते मीटिंग कैंसिल नहीं हो पाई थी। तो यह विशेष तौर पर इनेलो समर्थकों के लिए एक अच्छी बात रही लेकिन मैं बता दूं कि यह अभय सिंह चैटाला के लेवल का मामला नहीं है। अभय सिंह चौटाला देश व हरियाणा की राजनीति करने वाले परिवार का एक हिस्सा है। 


    खैर एक बार फिर मुद्दे पर आते हैं और कप्तान मीनू बैनीवाल जिन्होंने पिछले 3 साल में समाजसेवी के रूप में अपनी भूमिका बनाई है उसको अब बनाए रखना उनके लिए एक चुनौती बनी हुई है क्योंकि यदि चेयरमैन अविश्वास प्रस्ताव की तरह और गलतियां उनकी तरफ से होती है तो फिर ऐसी हरकतों की वह भरपाई नहीं कर पाएंगे। इससे पहले भी कप्तान मीनू बैनीवाल की कई गलतियां चर्चा का विषय बनी हुई है जिसमें एक विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी को नजरअंदाज करना भी बड़ी गलती में शामिल मैं निजी तौर पर मानता हूं। भले ही कप्तान मीनू बैनीवाल अभय चौटाला के संदर्भ में अपनी मंशा पूरी कर चुके हैं लेकिन बीजेपी की नीतियों और संगठन की उम्मीद पर वह खरे नहीं उतर पाए हैं। ऐसे में संगठन और बीजेपी का विश्वास बनाए रखना उनके लिए एक बड़ी चुनौती फिलहाल नजर आ रही है। क्योंकि बीजेपी के ही स्थानीय विधानसभा प्रत्याशी अमीर चंद मेहता ने कप्तान मीनू बैनीवाल का नाम लिए बगैर ‘गद्दार’ का टैग दिया था, जिसपर अभी तक कप्तान मीनू बैनीवाल की चुप्पी बनी हुई है।


    वहीं हाल ही में विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा संगठन की मीटिंग और कार्यक्रमों में भी कप्तान मीनू बैनीवाल की गैरहाजिरी उनकी भाजपा की राजनीति में संकट है। इसके अलावा कल सुबे के मुख्यमंत्री सिरसा को एक बड़ी सौगात मेडिकल काॅलेज के रूप में देने के लिए आए हुए थे तो उसमें भी कप्तान मीनू बैनीवाल या उनकी टीम की अनुपस्थिति थी। अब यह एक सीक्रेट एजेंडे के तहत कार्य कर रहे हैं, दूसरों की लकीर काटनें में लगे हुए हैं या फिर अपनी लकीर अलग खींचने में लगे हैं यह तो कप्तान साहब खुद ही बता सकते हैं।


    अल्टीमेटली विधानसभा चुनाव से लेकर आज तक का जो सिस्टम कप्तान मीनू बैनीवाल और उनकी टीम की तरफ से किया जा रहा है वह मेरे आंकलन में सही प्रतीत नहीं हो रहा है। समाज सेवा के प्रति उनके रवैया से उनके प्रति मेरी सहानुभूति है। ऐसे में कप्तान साहब को इस पर विचार जरूर करना चाहिए। वहीं 20 तारीख की इस अविश्वास प्रस्ताव की मीटिंग के बाद कुछ पंचायत समिति सदस्यों ने इस मीटिंग को शून्य करवाने के लिए एक बार फिर जिला उपायुक्त का दरवाजा खटखटाया है और चर्चा है कि उसमें भी कप्तान मीनू बैनीवाल और उनकी टीम सक्रियता से लगी हुई है जो की मेरे दृष्टिकोण से यह कदम भी उचित नहीं होगा। बाकि इंसान जो भी करता है, अपने हिसाब से तो ठीक ही करता है।

                   अब अगर आपने पूरा आर्टिकल पढ़ा ही है तो अपनी राय भी देते जाइए....

                                                                                                                                     ✍️✍️ पत्रकार हनुमान पूनिया

 

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