Haryana: सीएम नायब सैनी छोड़ सकते हैं करनाल सीट, अपनों से सता रहा है भीतरघात का डर
Haryana: हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी करनाल सीट छोड़ सकते हैं और भाजपा के उच्च सूत्रों के अनुसार, पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व उनके लिए नई सीट की तलाश में है। इसके लिए तीन सीटों का विकल्प तैयार किया गया है, जिनमें से कुरुक्षेत्र की लाडवा सीट को पसंदीदा माना जा रहा है।
सैनी ने कुछ महीने पहले लोकसभा के साथ हुए उपचुनाव में करनाल विधानसभा सीट से उपचुनाव जीता था। चूंकि भाजपा यह चुनाव सीएम नायब सैनी की अगुआई में ही लड़ रही है, इसलिए उन्हें किसी कठिन मुकाबले में नहीं फंसाना चाहती। इसी वजह से जातीय समीकरण से लेकर भाजपा के आधार वाली सुरक्षित सीट की तैयारी की जा रही है।
खास बात यह है कि सीएम सैनी खुद भी इस बात की पुष्टि नहीं कर रहे कि वह करनाल से ही लड़ेंगे। दो दिन पहले पंचकूला में हुई मीटिंग में उन्होंने इसका फैसला केंद्रीय नेतृत्व पर छोड़ दिया था।
सीएम सैनी के लिए चुनी गई तीन सुरक्षित सीटें और उनकी वजह:
1. लाडवा: सैनी बिरदारी, ओबीसी वर्ग और लोकसभा का कनेक्शन लाडवा विधानसभा क्षेत्र कुरुक्षेत्र में है। इस विधानसभा में 1 लाख 95 हजार से ज्यादा वोट हैं। जिसमें 50 हजार वोट जाट समाज की है। इसके अलावा सैनी समाज के 47 हजार से ज्यादा वोट है। अगर ओबीसी वोट की बात करें तो 90 हजार से ज्यादा वोट ओबीसी वर्ग की हैं। ओबीसी वर्ग और खास तौर पर सैनी समुदाय के वोट बैंक की वजह से यह सीएम के लिए पसंदीदा सीट मानी जा रही है।
2. गोहाना: समुदाय और बैकवर्ड क्लास का प्रभाव गोहाना विधानसभा सीट सोनीपत जिले में है। गोहाना विधानसभा में 2 लाख से ज्यादा वोटर हैं। जिसमें करीब 50 हजार वोट जाट समाज से है। सैनी समाज से करीब 17 हजार के करीब वोट है। टोटल ओबीसी वोट बैंक की बात करें तो 80 हजार वोट ओबीसी समाज की है। ओबीसी वोट बैंक के चलते ही 2019 राजकुमार सैनी ने इसी विधानसभा से चुनाव लड़ा था।
3. नारायणगढ़: सैनी का गृह क्षेत्र लेकिन यहां रिस्क ज्यादा अंबाला का नारायणगढ़ विधानसभा क्षेत्र सीएम नायब सैनी का गृह क्षेत्र है। राजनीतिक जानकार एडवोकेट संजीव मंगलौरा कहते हैं कि गृह क्षेत्र से चुनाव लड़ने का बड़ा लाभ यह होता है कि स्थानीय मतदाताओं के साथ व्यक्तिगत संबंध होते हैं। चूंकि सैनी सीएम और आगे भी सीएम बन सकते हैं, ऐसे में स्थानीय मतदाता ज्यादा तरजीह देता है।
करनाल सीट छोड़ने के 3 बड़े कारण
1. पंजाबी वोट बैंक की नाराज़गी
करनाल सीट पर पंजाबी वोट बैंक का दबदबा है। इस सीट के कुल 2 लाख 66 हज़ार वोटरों में से पंजाबी समुदाय के पास सबसे ज़्यादा 64 हज़ार वोट हैं। सैनी समुदाय के पास यहाँ सिर्फ़ 5800 वोट हैं। इसके अलावा अगर कुल ओबीसी वोटरों की बात करें तो यहाँ करीब 35 हज़ार वोट हैं।
चूँकि मनोहर लाल खट्टर ने पिछली बार करनाल से चुनाव लड़ा था, इसलिए वे पंजाबी समुदाय से थे। इसलिए उन्हें पंजाबी वोटरों का समर्थन मिला। सैनी ओबीसी कैटेगरी से आते हैं। उनके समुदाय और ओबीसी कैटेगरी के वोट भी बहुत कम हैं। ऐसे में उन्हें नुकसान हो सकता है।
वहीं, अब पंजाबी समुदाय भी मुखर होकर प्रतिनिधित्व की मांग कर रहा है। इसे भांपते हुए कुछ दिन पहले कांग्रेस ने करनाल में पंजाबी महासम्मेलन भी किया है। हुड्डा ने तो यहाँ तक वादा किया कि अगर कांग्रेस की सरकार बनी तो वे पंजाबी विस्थापित कल्याण बोर्ड बनाएंगे। इस वजह से भी बीजेपी को पंजाबी वोट खोने का डर है।
कांग्रेस ने करनाल में पंजाबी महासम्मेलन किया। इस कार्यक्रम में पंजाबी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले भूपेंद्र हुड्डा और राज बब्बर भी मौजूद थे।
कांग्रेस ने करनाल में पंजाबी महासम्मेलन आयोजित किया। इस कार्यक्रम में पंजाबी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले भूपेंद्र हुड्डा और राज बब्बर भी मौजूद थे।
2. सत्ता विरोधी लहर का खतरा
करनाल 10 साल से सीएम सिटी है। सीएम का गृहनगर होने के कारण भाजपा भले ही लाभ की उम्मीद कर रही हो, लेकिन यहां सत्ता विरोधी लहर का खतरा भी ज्यादा है। सीएम सिटी होने के कारण विरोध के अलावा लोगों का आम विधायक के तौर पर सीएम से सीधा संपर्क भी नहीं हो पाता।
चूंकि खट्टर पहले ही सबको शांत करने में कामयाब हो चुके हैं, इसलिए सैनी के लिए पिछले कुछ महीनों में यह संभव नहीं है। इसकी वजह 3 महीने पहले लोकसभा चुनाव और अब विधानसभा चुनाव के कारण पर्याप्त समय नहीं मिल पाना है।
मनोहर लाल खट्टर के केंद्र सरकार में शामिल होने के बाद करनाल के अन्य नेता टिकट की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन सैनी के चुनाव लड़ने पर यह रास्ता फिर बंद हो जाएगा। ऐसे में टिकट की चाहत रखने वाले नेता बगावत कर सकते हैं।
मनोहर लाल खट्टर के केंद्र सरकार में शामिल होने के बाद करनाल के अन्य नेता टिकट की उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन सैनी के चुनाव लड़ने पर यह रास्ता फिर बंद हो जाएगा। ऐसे में टिकट की चाहत रखने वाले नेता बगावत कर सकते हैं।
3. भितरघात का खतरा, स्थानीय दावेदारों की बगावत
सैनी को करनाल सीट पर भितरघात का खतरा भी सता रहा है। सीएम के करीबी सूत्रों का कहना है कि मनोहर लाल खट्टर के करीबी रहे उनके दल सीएम सैनी का दिल से समर्थन नहीं कर रहे हैं। यह तो तय है कि खट्टर उन्हें मना लेंगे, लेकिन सैनी के लिए यह जोखिम रहेगा कि वे चुनाव में कितनी मदद करेंगे।
खट्टर के जाने के बाद स्थानीय नेताओं को उम्मीद थी कि अब उन्हें मौका मिलेगा, लेकिन अगर सैनी यह चुनाव जीत जाते हैं तो अगले 5 साल के लिए उनके रास्ते बंद हो जाएंगे। ऐसे में उनके बगावत करने का खतरा रहेगा।